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किन्तु इनका क्या करें ? (नवगीत) // -सौरभ

खिड़कियों में घन बरसते
द्वार पर पुरवा हवा..
पाँच-तारी चाशनी में पग रहे
सपने रवा !
किन्तु इनका क्या करें ?

क्या पता आये न बिजली
देखना माचिस कहाँ है
फैलता पानी सड़क का
मूसता चौखट जहाँ है
सिपसिपाती चाह ले
डूबा-मताया घुस रहा है
हक जमाता है धनी-सा
जो न सोचे..
क्या यहाँ है ?

बंद दरवाजा, खुला बिस्तर,
पड़ी है कुछ दवा..
किन्तु इनका क्या करें ?

मात्र पद्धतियाँ दिखीं  
प्रेरक कहाँ सिद्धांत कोई
क्या करे मंथन
विचारों में उलझ उद्भ्रान्त कोई
चढ़ रहा बाज़ार
फिर भी क्यों टपकता है पसीना ?
सूचकांकों के गणित में
पिट रहा है क्लान्त कोई

एक नचिकेता नहीं
लेकिन कई वाजश्रवा
किन्तु इनका क्या करें ?

सिमसिमी-सी मोमबत्ती
एक कोने में पड़ी है
पेट-मन के बीच, पर,
खूँटी बड़ी गहरी गड़ी है
उठ रही
जब-तब लहर-सी
तर्जनी की चेतना से,
ताड़ती है आँख जिसको
देह-बन्धन की कड़ी है

फिर दिखी है रात जागी
या बजा है फिर सवा..
किन्तु इनका क्या करें ?
****************************
-सौरभ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 10, 2017 at 12:18pm
Bahut hi sunder navgeet .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2017 at 12:04pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपसे मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया मुझे भी उत्साहित कर रही है. यह अवश्य है कि नवगीतों की बिम्बात्मकता आम गीतों से भिन्न होती है और नवगीतों को सामान्य गीतों से विलग करने के प्रमुख कारणों में से है. आपको मेरी प्रस्तुति रुचिकर लगी इस हेतु हार्दिक धन्यवाद. वस्तुतः यह नवगीत ओबीओ के बाहर साहित्यांचल में भी सुधीजनों द्वारा प्रशंसित हुआ है. अतः ओबीओ की रचनाओं के प्रति वैसे भी गरिमा के भाव उपजते हैं.  

आपके ही कारण, अपनी पस्तुति पर मेरा भी आना संभव हो पाया है. इस केलिए विशेष धन्यवाद तो बनता ही है. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2017 at 12:04pm

आदरणीय सन्तलाल करुण जी, आपकी टिप्पणी पर धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए विलम्ब से आना खल रहा है. आप्का सादर धन्यवाद. 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2017 at 5:52pm
नवगीत और क्षणिकाएं मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं, पसंद हैं। आपकी रचनाओं से भी नवगीत समझने/सीखने की कोशिश करता हूं। हर बंद में प्रयुक्त मुख्य शब्दों में समाहित/सांकेतिक वृहद भावों से परिपूर्ण बेहतरीन नवगीत को पढ़कर, फिर टिप्पणियों का अध्ययन कर, पुनः रचना पढ़कर नवगीत की ताक़त/सम्प्रेषणता से बहुत प्रभावित हुआ हूं। । सादर हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।
Comment by Santlal Karun on September 1, 2015 at 5:56pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आज आप के ब्लॉग पर आना हुआ, तो इस ताज़े-टटके नवगीत से कुछ नवीन संवेदनाओं की अनुभूति हुई -- सधी हुई गीत रचना मन तक को छू गई | इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:26pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी, रचना को आपसे अनुमोदन मिला, मन में अपार संतोष है. सादर धन्यवाद आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:25pm

आदरणीय चन्द्रशेखरजी, हौसलाअफ़ज़ाई केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:25pm

आदरणीय प्रदीपजी, हार्दिक धन्यवाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2015 at 9:29am

आ० सौरभ जी

अद्भुत  नव गीत . भावों की गम्भीरता देखते ही बनती  है .
बंद दरवाजा, खुला बिस्तर,
पड़ी है कुछ दवा..
किन्तु इनका क्या करें ? ----इन तीन पंक्तियों में मानो एक आख्यान  समाहित है .पूरा गीत ही  उद्धरणीय  है  किसी एक बंद की बात क्या करें ----------------- सादर .

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 6, 2015 at 9:30pm

वाह वाह क्या बात है सर
ज़िंदाबाद

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