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दिल में जो छुपाया है बोलना चाहेंगे

उसे दिल से मिटाया है बोलना चाहेंगे।

करेंगे जतन मिटादें उसकी यादों को

उसे हमने भुलाया है बोलना चाहेंगे।

वो हरगिज़ न रहेगा यादों में मिरी

याद बनके सताया है बोलना चाहेंगे।

बड़ा गुरुर था उसे मुझे अपने प्यार पर

हालात ने मिटाया है बोलना चाहेंगे।

फलक के चाँद से बातें किया रातें जगी मैंने

माहताब भी शर्माया है बोलना चाहेंगे।

अच्छा सिला दिया है मेरे यार ने मुझे 

जो भी खोया पाया है बोलना चाहेंगे।

दुनियादारी भी होती है क्या खूब अवनीश

अपनों ने सितम ढाया है बोलना चाहेंगे।

जहाँ में कुछ यहाँ रख्खा नहीं है दोस्तों सुनों

हर इक चाह ने तड़पाया है बोलना चाहेंगे।

सुब्ह शाम सातों दिन है दररोज का चक्कर

पेट पीठ तक सट आया है बोलना चाहेंगे।

बुरा वक़्त है हालात बुरा कौन चाहता

अपना भी हुआ पराया है बोलना चाहेंगे।

   

      मौलिक एवं अप्रकाशित

                अवनीश

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Comment

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Comment by Samar kabeer on September 15, 2022 at 4:28pm

जनाब अवनीश जी आदाब, आपने इस ग़ज़ल के क्या अरकान लिए हैं ? बताने का कष्ट करें ताकि इस पर टिप्पणी करने में आसानी हो I 

कृपया ध्यान दे...

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