For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ब्राह्मणवाद (अतुकान्त) // --सौरभ

अतिशय उत्साह

चाहे जिस तौर पर हो 

परपीड़क ही हुआ करता है 

आक्रामक भी. 

 

व्यावहारिक उच्छृंखलता वायव्य सिद्धांतों का प्रतिफल है 

यही उसकी उपलब्धि है 

जड़हीनों को साथ लेना उसकी विवशता 

और उनके ही हाथों मुहरा बन जाना उसकी नियति 

मुँह उठाये, फिर, भारी-भरकम शब्दों में अण्ड-बण्ड बकता हुआ 

अपने वायव्य सिद्धांतो को बचाये रखने को वो 

इस-उस, जिस-तिस से उलझता फिरता है. 

  

भाव और रूप.. असंपृक्त इकाइयाँ हैं 

तभी तक, लेकिन, सहिष्णुता के प्रमाद में 

’ब्राह्मणवाद’ का मुखौटा न धार लें 

जो सोच और स्वरूप में डिस्क्रिमिनेशन को हवा देता है 

स्वयं को ’श्रेष्ठ’ समझने और समझवाने का कुचक्र चलता हुआ 

अपनी प्रकृति के अनुसार ही ! 

फिर निकल पड़ता है हावी होने

अपने नये रूप और नयी चमक के साथ 

पूरे उत्साह में ! 

  

’ब्राह्मणवाद’ हर युग में सुविधानुसार अपनी केंचुल उतारता है 

आजकल ’पद-दलितों और पीड़ितों’ की बातें करता है 

अतिशय उत्साह में.. 

 

**************************

-सौरभ 

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 1345

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 20, 2015 at 2:07pm

आदरणीय गोपाल नारायणजी, आप से इस प्रस्तुति पर मिला अनुमोदन उत्साहवर्द्धक है. 

सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 10, 2015 at 7:52pm

'ब्राह्मणवाद' की व्यापक परिभाषा, विश्लेषण, प्रतिक्रिया, प्रतिक्रियायों की व्याख्या सब कुछ अनुपम ... बस बार-बार पढ़कर कर मनन करने को विवश हूँ.  इस रचना को और व्यापक बनाने की जरूरत है मेरी समझ से! आदरणीय सौरभ सर तथा अन्य सभी विद्वतजन को नमन, वंदन और अभिनन्दन करता हूँ. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 11:26pm

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आपका इस कविता को अनुमोदित करना और इसके मर्म के प्रति संवेदनशील होना मेरे लिए अत्यंत तोषकारी है.

यह कविता मात्र आज के ढोंग पर न बोल कर प्राचीनकाल से चले आ रहे ’संगठित ढोंग’ पर लानत भेजती हुई, छटपटाती है.

धर्मेन्द्रजी, भारतीय समाज में अनेकानेक विसंगतियों या सामाजिक तथा वैचारिक विद्रूपताओं के दोषी ब्राह्मण कभी नहीं थे बल्कि उस स्तर तक बिना पहुँचे दिखावा करने वाले लोगों की जमात थी. ऐसेलोगों की जमात आज भी है. उसी जमात के आचरण को ’ब्राह्मणवाद’ कह कर चिह्नित किया गया है. यह जाति सूचक नाम न हो कर. जैसा कि आप समझ ही रहे हैं, विचार तथा आचरण परक संज्ञा है. 

//आजकल "पद-दलित और पीड़ित" की बात कर लेने मात्र से लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगते हैं यानि उसी ब्राह्मणवाद का शिकार हो जाते हैं जिसके विरोध में वो खड़े हैं। //

बिल्कुल. 

आजके जो राजनैतिक (राजनीतिक), वैचारिक या सामाजिक समूह या संगठन या कौम बिना आमजन को साथ लिये उनकी परम्पराओं और परिपाटियों के ऊपर उन्हें चिढ़ाते हैं, उन्हें मूर्ख घोषित करते फिरते हैं और बार-बार लानत भेजते हुए बहिष्कृत करते फिरते हैं, वे सभी घोर ब्राह्मणवाद के पोषक हैं. यानी ब्राह्मणवादी हैं. ये सभी एक पूरे समाज को बिना उसे समवेत लिये या समझे उसकी भर्त्सना करते हैं. बार-बार एक पूरी जीवन शैली को कोंसते रहते हैं. ये घोर ब्राह्मणवादी जिस उपाय को निराकरण समझते और समझवाते हैं, उनके पास क्या उन निराकरणों की सफलता के उदाहरण भी हैं ? समाज को इन नव-ब्राह्मणों ने कोई सार्थक व्यवस्था दी है जो कायदे से पचास वर्ष भी चल सकी हो ?

कहने और पूछने को बहुत कुछ है, आदरणीय. आपने सही कहा है, जो समाज के ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ बोलते है आगे चलकर इसी ब्राह्मणवाद का शिकार हो जाते हैं .

आपको मेरे विचार रुचिकर लगे इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय धर्मेन्द्र जी .. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 10:52pm

अदरणीया छाया शुक्लाजी, आपका अनुमोदन सुखद है.

हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2015 at 8:06pm

आदरणीय गुरुवर

नमस्तक हूँ इस  कविता पर और आपकी बिन्दास बयानी पर खासकर -

जो सोच और स्वरूप में डिस्क्रिमिनेशन को हवा देता है 

स्वयं को ’श्रेष्ठ’ समझने और समझवाने का कुचक्र चलता हुआ 

अपनी प्रकृति के अनुसार ही ! 

फिर निकल पड़ता है हावी होने

अपने नये रूप और नयी चमक के साथ 

पूरे उत्साह में ! 

ब्राह्मणवाद को नए सन्दर्भों में परिभाषित करने के लिए  आपको साधुवाद . सादर.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 6:04pm

क्या बात है। इस शानदार कविता के लिए बधाई स्वीकार कीजिए। अंतिम पंक्तियाँ तो सच में छू गईं। आजकल "पद-दलित और पीड़ित" की बात कर लेने मात्र से लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगते हैं यानि उसी ब्राह्मणवाद का शिकार हो जाते हैं जिसके विरोध में वो खड़े हैं।

Comment by Chhaya Shukla on September 9, 2015 at 10:46am

आदरणीय आपके उद्गार सोंचने को विवश कर रहे हैं | आज के सन्दर्भ में आपकी रचना का स्वागत करते हैं और आपको नमन !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 10:37am

आदरणीय सन्तलाल करुण जी, प्रस्तुति में उद्धृत रूप-विरूप को आपका अनुमोदन मिला इस हेतु हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 10:36am

आदरणीय हर्ष महाजनजी, आपसे प्रस्तुति पर मुखर अनुमोदन पाना मेरे रचनाकर्म के लिए संतोष का कारण है. इस हेतु हार्दिक धन्यवाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 10:32am

आदरणीय लक्ष्मणप्रसादजी, इस रचना के सापेक्ष आपकी सोच के विन्दु मनन के लिए वस्तुतः उपयुक्त हैं. इस साझा के लिए हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service