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बन्धन (लघु कथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

“दोनो पैरों के अँगूठों में बन्धी रस्सी भी खोल दो, चिता पर कोई भी गाँठ या बन्धन नहीं होता..”
“चिता पर सारे बन्धन खत्म हो जाते हैं” - किसी और ने कहा.

सुनते ही राकेश पत्नी प्रिया और उसके बीच के सबसे बडे़ बन्धन एक साल के बेटे को अपने सीने से लगाये प्रिया के निर्जीव शरीर को चुपचाप देखता हुआ फिर से फ़फ़क पड़ा.
*************************
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 11:13am

आदरणीय राहुल जी, 

इस मंच पर आपका स्वागत है.

इस मंच की कुछ परिपाटियां है जिसे सभी सदस्य अपनाने की कोशिश करते हैं जिससे सदस्यों के बीच आदर और सम्मान का भाव बना रहता है. साथ ही साथ सीखने और सिखाने की प्रक्रिया भी सतत चलती रहती है. इस मंच पर पाठको से ये अपेक्षा रहती है कि रचना पर अपने विचार खुल कर प्रदान करें. 

रचना पर आने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 10:54am

आदरणीया कान्ता जी, 

बन्धन मुक्ति के आयाम को और स्पष्ट करते हुये आपने विचार देने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Omprakash Kshatriya on July 3, 2015 at 9:00am

आदरणीय शुभ्रांशु  भाई जी, बहुत ही मार्मिक लघुकथा हुई है, 

बधाई आप को .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2015 at 8:35pm

मार्मिक /बेहतरीन

अनोखा बंधन

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 7:39pm

मार्मिक! केवल महसूस किये जा सकते हैं, अवर्णनीय आदरणीय शुभ्रांशु जी!

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 5:24pm

मार्मिक .अद्वितीय ,,,,कम शब्द हैं पर सीधे दिल तक पहुँच रही है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 2, 2015 at 5:03pm

आदरणीय शुभ्रांशु  भाई जी, बहुत ही मार्मिक लघुकथा हुई है, आपने बंधन को विशिष्ट तरीके से परिभाषित करता हुआ आयाम प्रस्तुत किया है. इस सशक्त सार्थक और सफल लघुकथा की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 3:23pm

आपकी रचना ने तो भावुक कर दिया ..शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 2:23pm

बहुत मार्मिक!आगे और क्या कहूँ??


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2015 at 11:21am

बहुत मार्मिक... बंधन शब्द को सार्थक करती लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई ...बाहर के बंधन तो दिखाई देते हैं लेकिन जो आत्मिक बंधन होते हैं वो ??क्या उनको खोल सकते है ?

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