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आरती उतारूँ क्या?(छोटी बह्र की ग़ज़ल 'राज')

२१२ १२२ २

गली गली बुहारूँ क्या?

नालियाँ निथारूँ क्या ?

काम छोड़ कर अब मैं 

रास्ता निहारूँ क्या?

 

आसमां से उतरे हो  

आरती उतारूँ क्या?

 

धूल लग गई शायद

पाँव  भी पखारूँ क्या?

 

देखना है  चेह्रा  अब     

आईना सँवारूँ क्या?

 

लाए कुछ नए जुमले   

शब्द मैं सुधारूँ क्या? 

 

धूप लग रही क्या जी

अब्र को पुकारूँ क्या?

 

वोट मांगने आये 

पांच साल वारूँ क्या?  

 

स्याह क्यूँ हुई रंगत   

बोलिए निखारूँ क्या?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:33am

कृष्ण मिश्रा जी ,इस व्यंगात्मक ग़ज़ल का आनंद उठाया आपने बहुत- बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2015 at 10:27pm

मिथिलेश भैया  ,आपकी शंका वाजिब है इस त्रुटी की और ध्यान  दिलाने का शुक्रिया दरअसल दो मतले तैयार किये थे --एक में रास्ता निहारूँ  क्या ?दुसरे में नालियाँ निथारूँ क्या ? फिर सोचा  दूसरा  ज्यादा ही हार्श  हो जाएगा सो पहला पोस्ट कर दिया उस और ध्यान  ही नहीं गया ,अब इसे ठीक  कर दूँगी ,अभी थोड़ी जल्दी में हूँ  कल आती हूँ पोस्ट पर |

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:22pm

वाह बहुत खूब ..छोटी बहर में ...क्या खूबसूरत ग़जल कही है..बहुत बधाई आपको .सादर

Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 8:45pm
धूप लग रही क्या जी
अब्र को पुकारूँ क्या?... बहुत प्यारा सा.. अच्छा शे'र. इस मौसम में होठों पे रखने लायक.
बाकी के अशआर भी ख़ूब लगे आदरणीया. बधाइयाँ.. बधाइयाँ.. आपको
मिथलेश वामनकर सर की बात काबिले गौ़र है.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2015 at 8:37pm

कमाल है दीदी श्री

छोटी बहर में धमाल .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 7:43pm

वाह वाह! गागर में सागर आदरणीया राजेश कुमारी जी!

लाए कुछ नए जुमले   

शब्द मैं सुधारूँ क्या?

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 5:28pm

आदरणीया राजेश जी ..इस छोटी बहर पर क्या कमाल की ग़ज़ल लिखी है आपने ..जितनी तारीफ़ की जाए कम है ..ताजगी से भरी और नेताओं पर शानदार कटाक्ष करती इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई सादर 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 5:27pm

लाए कुछ नए जुमले   

शब्द मैं सुधारूँ क्या? 

 

धूप लग रही क्या जी

अब्र को पुकारूँ क्या?

 

वोट मांगने आये 

पांच साल वारूँ क्या?  ,,,,,,,,,,लाजवाब ,,सुन्दर आ, rajesh kumari जी ,,|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 2, 2015 at 5:18pm

आदरणीया राजेश दीदी छोटी बह्र में आपने बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है, आपको शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

इस शेर ने तो दिल ही लूट लिया-

आसमां से उतरे हो  

आरती उतारूँ क्या?

दीदी मतले में बुहारूँ/ निहारूँ में काफिया--आरूँ होगा या हारूँ ...थोड़ा सा सशंकित हूँ मार्गदर्शन का निवेदन है. सादर 

Comment by kanta roy on July 2, 2015 at 2:19pm
वोट मांगने आये 
पांच साल वारूँ क्या?  
 
स्याह क्यूँ हुई रंगत   
बोलिए निखारूँ क्या........ बेहद खूबसूरत अंदाज़ है यह भी गजल कहने का ... वाह !!!! लाजवाब !

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