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परिणति पीड़ा

रिश्ते के हर कदम पर, हर चौराहे पर

हर पल

भटकते कदम पर भी

मेरे उस पल की सच्चाई थी तुम

जिस-जिस पल  वहीं कहीं पास थी तुम

जीवन-यथार्थ की कठिन सच्चाइयों के बीच भी

खुश था बहुत, बहुत खुश था मैं

पर अजीब थी ज़िन्दगी वह तुम्हारे संग

स्नेह की ममतामयी छाओं के पीछे भी मुझमें

था कोई अमंगल भ्रम

भीतरी परतों की सतहों में हो जैसे

अन-चुकाये कर्ज़ का कंधों पर भार

तुमसे कह न सका पर इतनी खुशी से मुझको

अकसर लगता था डर ...

डर .... कि कब किसी  ‘अविवेकी ’ सत्य के बहाने

कोई इर्ष्या-प्रसूत पल

पगलाये स्वार्थों में पली दानव-सी हँसी हँस दे

हमारे स्वर्णिम पलों की असलियत को अकस्मात

आश्रयहीन कर दे

मेरे कोमल शिशु-मन को आवेग में दबोच

भीषण दर्दीले प्रश्नों की तपती रेत में मुझको

छोड़ जाए अकेला असहाय अनुत्तरित

और आंतरिक बारूदी धुएँ से घिरा

बेचैन मन उस दम घोटते धुएँ में पुकारे तुमको

टूटे विश्वास की गहरी चोट लिए

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

(copyright)

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Comment by annapurna bajpai on August 19, 2015 at 6:55pm

बहुत सुंदर भाव युक्त रचना 

Comment by Sushil Sarna on August 19, 2015 at 5:24pm

मेरे कोमल शिशु-मन को आवेग में दबोच
भीषण दर्दीले प्रश्नों की तपती रेत में मुझको
छोड़ जाए अकेला असहाय अनुत्तरित
और आंतरिक बारूदी धुएँ से घिरा
बेचैन मन उस दम घोटते धुएँ में पुकारे तुमको
टूटे विश्वास की गहरी चोट लिए

नमन आदरणीय निकोर साहिब नमन … आंतरिक भावों के आवेगों को आपने अपनी कलम से जो गहराई बख्शी है वो कमाल है .... इस प्रस्तुित पर दिली दाद कबूल फरमाएं सर। हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:43am

आ० भाई विजय जी , इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by Dr T R Sukul on August 16, 2015 at 5:22pm
महोदय ! इस कविता में , डर का संदेह और संदेह का डर आपके अंतरंग प्रेम ने सुंदरता से प्रकट किया है , बधाई। 
Comment by Mamta on August 12, 2015 at 10:14am
बहुत खूब !
आदरणीय विजय जी।आप पीड़ा पढ़ने-पढाने और महसूस करने -करवाने में पारंगत हैं।
सादर ममता
Comment by vijay nikore on July 21, 2015 at 7:06am

सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय प्रदीप जी।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2015 at 12:36pm

आदरणीय 

 सादर अभिवादन 

भय , बहुत सुन्दर भाव लिए रचना 

बधाई 

Comment by vijay nikore on July 13, 2015 at 12:02pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया सविता जी।

Comment by vijay nikore on July 13, 2015 at 1:01am

 //उफ्फ ! आंतरिक भावों का आपने कितने गहनता से चित्रण किया है//

अतिशय धन्यवाद इस मान के लिए, आदरणीय सुशील जी।

Comment by savitamishra on July 12, 2015 at 11:33pm

बहुत बढ़िया रचना | सादर नमस्ते आदरणीय

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