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रद्दी (लघुकथा)/रवि प्रभाकर

‘इन किताबों की जिल्दें उखाड़ कर गत्ता अलग करो, और इन पैक की हुई किताबों को भी खोलो।‘ कबाड़ की दुकान का मालिक अपने नौकरों को आदेश दे रहा था
‘ये इतनी सारी रद्दी कहाँ से ले आए ?’ एक नौकर ने पूछा
‘वो जो पीछे लाल कोठी वाले साहिब हैं न, जो विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग के अध्यक्ष हैं, उन्हीं के घर से लाया हूँ।’
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:58pm

बेहतरीन कथा | बहुत बहुत बधाई आदरणीय सर |

Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:33pm

" पैक की हुई किताबों को भी खोलो "-----वाकई में पढ़कर मन वितृष्णा से भर गया।  दिल को विहल करती बेहद शानदार लघुकथा बन पड़ी है ये आपकी आदरणीय रवि जी।  

जाने कैसे वंचित रह गयी इन सार्थक रचनाओं को पढ़ने से। अब ढूंढ -ढूंढ कर सारे पढूंगी।  सादर।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 9:43pm

ओह! अपने पद की गरिमा के प्रति गंभीरता, उसकी पात्रता व दायित्व का बोध ही न होना ...

ऐसे उदाहरणों का समाज में व्याप्त होना दुखद है.... आपने बहुत सटीकता से उनके कृत्यों के ज़रिये इस चिंतनीय बिंदु को प्रस्तुत किया है 

इस सफल-सटीक  लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 6:59pm

भाई रविजी, एक सत्य घटना को कितनी गहराई से आत्मसात कर आपने तत्सम्बन्धी भावों को शाब्दिक कर उन्हें एक समृद्ध रचना का स्वरूप दे दिया ! इसे कहते हैं पारखी दृष्टि का कमाल ! हार्दिक बधाइयाँ, भाई..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 28, 2015 at 11:02am

// जो विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग के अध्यक्ष हैं // ..... सिस्टम पर एक कमाल की चोट करता और कडवा सच दिखाती एक लाजवाब कथा!

 आदरणीय रवि जी मेरी और से सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे.

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 28, 2015 at 10:47am

कमाल का पंच मारा है आदरणीय रवि जी. आपकी लघुकथाओं में अंतिम पंक्ति बहुत गहरा घाव दे जाती है, बहुत-बहुत बधाई आपको ,आदरणीय रवि जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:42pm

बहुत बेहतरीन लघुकथा 

बहुत बधाई आदरणीय रवि जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2015 at 8:12pm

बेहतरीन आदरणीय रवि प्रभाकर सर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2015 at 11:37am

अति सुन्दर   ! बधाई प्रभाकर जी  .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 10:52am

क्या बात है आ० ऐसी लघुकथाए तो आप ही कह सकते है!बेहतरीन!

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