"नही! मैं नही करती तुमसे प्यार।" यही कहा था मैंने उस दिन इसी जगह पर, ऐसी ही किसी शाम में।
"करने लगोगी, शादी के बाद।" तुम हॅस पड़े थे।
और फिर चंद हफ्तो बाद ही मैं दुल्हन बनी तुम्हारे घर आ गयी। उसके बाद जब भी तुमने ये सवाल किया मैं चुप रही, अब मन की बात नही बोल सकती थी न। और फिर एक दिन निकल गयी तुम्हारे जीवन से। 'उसी के' साथ जिससे 'मैं' प्यार करती थी।............
..........जल्दी ही लौट आयी थी मैं, उसके प्यार का जहर पीकर पर देर हो चुकी थी उसने मुझसे 'मनचाहा' पा कर मुझे छोड़ दिया था और तुम इसलिये छोड गये क्योंकि तुम मुझे पा कर भी नही पा सके।
अब मैं हूँ और मेरा पछतावा और दिन कट रहे है एक सजा की तरह। हर शाम आ खड़ी होती हूँ दूर दूर तक छाये पहाड़ो के अधेंरे में इसी पेड़ के नीचे। और घिरती रात के साये में दोहराया करती हूँ अक्सर तुम्हारे आखिरी खत में कही ये बात। "हमे प्यार हमेशा उससे करना चाहिये जो हमें चाहता हो उससे हरगिज नही जिसे हम चाहते हो।"
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इस सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक धन्यवाद वीरेन्द्रजी.
शुभकामनाएँ
आदरणीय विरेन्द्र जी,
सुन्दर कथा. ज्यादातर ऎसी कथाएं पुरुषों को ले कर लिखी जाती हैं अर्थ फ़िल्म याद आ गयी.
सादर.
बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय , लेकिन क्या कीजियेगा " दिल तो है दिल , दिल का ऐतबार क्या कीजै , आ गया जो किसी पे प्यार "। बहुत बहुत बधाई..
आदरणीय विनोद खनगवाल जी कथा पर स्नेह भरी प्रतिक्रिया देने के लिए आप का हार्दिक आभार !
कथा पर प्रोत्साहित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी !
आदरणीय डॉ, गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी कथा पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई के लिए मैं तहे दिल से आप का आभार हूँ.
जी आदरणीय सर प्यार अँधा ही होता है! .... और जब सच से सामना होता है तभी वास्तविकता का ज्ञान होता है और अक्सर तब तक समय बीत चूका होता है
प्रभापूर्ण सुंदर लघु कथा के लिए बधाई |
वाह ----------मेहता जी आपकी पञ्च लाईन इस जगह बहुत प्रभावी है -हमे प्यार हमेशा उससे करना चाहिये जो हमें चाहता हो उससे हरगिज नही जिसे हम चाहते हो।
नोट- प्यार अंधा भी तो होता है . वहां बुद्धि हैरान रहती है .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online