For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या

१२१२    ११२२   ११२२   २२ 

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या 

घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या 

हमें वो हीन कहें दींन  कहें या मुफलिस 

बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या 

बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो

खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या 

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या 

मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे 

नसीब उन को महल हैं ये अगर मुझको क्या 

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 4:23pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें ...सभी शेर उम्दा ....सादर 

Comment by kanta roy on May 16, 2015 at 12:12pm
बेमिसाल शेरों से सजी यह गजल सच में बहुत खूब लगी । क्या बात कह दिया इस शेर में कि ....जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या.......
लाजवाब ..... बधाई आपको आदरणीय डा आशुतोष मिश्रा जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:39am

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या ....  वाह! आदरणीय डा.आशुतोष जी. कमाल का शेर कहा आपने. दिली बधाई लीजिये

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 16, 2015 at 7:12am

आदरणीय मिथिलेश जी ..आदरणीय हरिप्रकाश जी ....रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद .सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:49pm

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या.....आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी बहुत सुन्दर ,  आ.मिथिलेश  भाई की  बात  ही दुहरा रहा हूँ ....आखिरी शेर ने तो दिल लूट लिया ! बधाई आपको  ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2015 at 2:58am

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से दाद हाज़िर है 

आखिरी शेर ने तो दिल लूट लिया ----

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या 

वाह वाह वाह 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 8:58pm

आदरणीय समर कबीर जी ..आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे और आपकी प्रतिक्रियाओं से मैं अपनी कमियों में सतत सुधार कर सकूं ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 8:56pm

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना आपको पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ ..उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Samar kabeer on May 14, 2015 at 5:57pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी ,आदाब,सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें।
Comment by Shyam Narain Verma on May 14, 2015 at 5:41pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Nov 29

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service