For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले- शिज्जु शकूर

1222/1222/1222/1222

मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले

सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले

 

गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन                                     *गुज़रा हुआ

उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले

 

किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार

हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले

 

किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ                               *रक्त पिपासु

तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले

 

मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो                                   *आदी

बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले

 

वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त

तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 1680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:43pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:42pm

आदरणीया माला झा जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:42pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:41pm

आदरणीया महिमाश्री जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:37pm

जनाब समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया जानकारी देने के लिये। यहाँ मैंने वहम का प्रयोग दानिस्ता किया है। उर्दू में भी ब्राहमण को बिरहमन लिखा और पढ़ा जाता है। भ्रम को भरम कहा गया है। तो फिर मैं वहम का वज्न 12 क्यों न लूँ। जबकि अब उर्दू हिन्दी के साथ घुलमिल गई है। जब उर्दूदाँ अपनी सुविधा के लिये हिन्दी अल्फ़ाज़ को अपने हिसाब से लिखते हैं तो मेरा प्रयोग भी गलत नहीं होना चाहिये क्योंकि वहम शब्द हिन्दी में घुलमिल गया है।

माजरत के साथ

Comment by Samar kabeer on May 3, 2015 at 6:45pm
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,"हरम" शब्द का इस्तेमाल जिन शाईरों ने भी किया है उसका मतलब पढ़ने वालों ने मस्जिद लिया है,जबकि जिस शाईर ने भी इसका इस्तेमाल किया है उससे मुराद काबे की चार दीवारी ही होता है,यह ग़लत फ़हमी पढ़ने वालों को इसलिये होती है कि इस शब्द का इस्तेमाल अधिकतर (दैर) के साथ होता है (दैर) शब्द का अर्थ मंदिर होता है इसलिये मंदिर के लिहाज़ से पढ़ने वाला हरम का मतलब मस्जिद समझ लेता है,अभी अभी मेरे बेटे ने बताया कि आपने "हरम" क़ाफ़िया की जगह "वहम" कर लिया है,सही शब्द है "वह्म" ,इस लिहाज़ से ये क़ाफ़िया यहाँ काम नहीं देगा |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2015 at 3:26pm

आहा हा ..चचा की ज़मीन पर भतीजे का कमाल देखते ही बनता है ..
क्या कहने वाह वाह वाह 
हरम मैंने भी कई ग़ज़लो में मस्जिद के रूप में सुना है 
दैर-ओ- हरम में बसने वालो 
मैख़ानो में फूट न डालो.

शिज्जू भाई आपको बहुत बहुत बधाई  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 11:37pm

आदरणीय शिज्जू जी ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है ..आपकी ग़ज़ल पर आदरणीय कबीर जी की प्रतिक्रिया से हरम शब्द के तमाम अर्थ पता चले लेकिनमैंने भी कई जगह हरम का मतलब मस्जिद पढ़ा है ..मुझे शेर याद नही आ रहे हैं ये जानकारी मेरे लिए भी नयी है ..आपको इस शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2015 at 9:48pm

मधुर बह्र में लाजवाब और शानदार ग़ज़ल 

दाद दाद दाद भाई जी 

Comment by Mala Jha on May 2, 2015 at 8:43pm
बेहद उम्दा ग़ज़ल!!क्या बात है।बधाई आपको आदरणीय "शकूर"जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service