For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वे झूठ के दाने बोते हैं
वे झूठ की खेती करते हैं 
जब झूठ की फसलें पकती हैं 
वे सच-मुच में खुश होते हैं 
फिर झूठ-मूठ ही मिल-जुलकर 
हर आने-जाने वाले को 
खाने की दावत देते हैं...

वहां झूठ के लंगर लगते हैं 
वहां झूठ के दोना-पत्तल में 
भर-भर के परोसी जाती हैं 
झूठ-मूठ की पूरी-सब्जी 
झूठ-मूठ के माल-पूवे....

इस झूठ के काले धंधे में 
कई सेवक मोटे- तगड़े से 
लट्ठ- हथियारों से लैस हुए 
जब कहते सबसे लो डकार 
और करो हमारी जय-जयकार 
तो होड़ मचाते आमंत्रित 
दुबले-पतले-मरियल सारे 
मिलकर करते जय-जयकार 
बने रहें हमारे सरकार...!

क्या ऐसा भी दिन आएगा 
जब भेद खुलेगा झूठों का 
जब झूठे धिक्कारे जायेंगे 
जब झूठे सच में भागेंगे...???

(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 18, 2015 at 10:43am
जनाब अनवर सुहैल जी,आदाब,सुंदर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:05am

बहुत सुंदर प्रस्तुति, आदरणीय अनवर साहब.

Comment by वीनस केसरी on April 18, 2015 at 3:23am

शानदार रचना है

हार्दिक बधाई ...

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 18, 2015 at 3:12am
झूठ के बारे में इतनी सच्ची बात। बहुत खूब , बधाई , आदरणीय अनवर सुहैल जी , साथ में एक उम्मीद ( कल्पना) भी है। वह भी अच्छी है। सादर ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 17, 2015 at 10:01pm

बेहतरीन रचना पर बधाई आदरणीय!

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:22pm

अनवर जी,   झूठ की खेती अच्छे मानकों के साथ,उत्तम रचना कही है।   बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service