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जिये जा जिये जा (एक बहुत छोटी बह्र पर ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२

भलाई किये जा

बुराई लिये  जा

 

उन्हें बाँट अमृत

जहर खुद पिये जा

 

तेरे पास जो है

दिये जा दिये जा

 

उन्हें तू उठा दे 

मगर खुद निये जा  

 

जवानी लुटा दे

बुढ़ापा सिये जा

 

जमाना ख़रा है

भरोसा किये जा

 

यही जिन्दगी है

जिये जा जिये जा

-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2015 at 8:03pm

आ०  समर कबीर  भाई  जी,ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन मिला मेरा लेखन कर्म सफल हुआ दिल से आभार आपका सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 4:46pm
वाह, आनंद आ गया , बहुत सुन्दर ग़ज़ल, बधाई, आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी, सादर
Comment by shree suneel on April 12, 2015 at 4:07pm
जवानी लुटा दे
बुढ़ापा सिये जा

जमाना ख़रा है
भरोसा किये जा
बहुत खूब.. उम्दा. .. बधाई आपको आदरणीया
Comment by Samar kabeer on April 12, 2015 at 2:40pm
मोहतरमा राजेश कुमारी जी,आदाब,बहना अस्ल में शैर कहने का मज़ा छोटी बह्र में ही आता है,बहुत अच्छे शैर निकाले हैं आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2015 at 1:12pm

शिज्जू भैया ,आपको छोटी बह्र पर ये प्रयास अच्छा लगा ,तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2015 at 12:48pm

आदरणीया राजेश दीदी छोटी बह्र पर अच्छा प्रयास है बहुत बहुत बधाई आपको

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