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ग़ज़ल- निलेश 'नूर' रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये

गागा लगा लगा लल गागा लगा लगा 

रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये
जबतक है जान जिस्म में, दिनरात काटिये.
.
है आप में अना तो अना मुझ में भी है कुछ 
यूँ बात बात पे न मेरी बात काटिये.  
.
ये कामयाबियों के सफ़र के पड़ाव हैं  
अय्यारियाँ भी सीखिए जज़्बात काटिये.
.
अगली फसल कटे तो करें इंतज़ाम कुछ
तब तक टपकती छत में ही बरसात काटिये.
.
ये इल्तिज़ा है आपसे इस मुल्क के लिए  
दिल से ये नफरतों के ख़यालात काटिये.  
.
रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या  
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये   

.
नूर 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 629

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:07pm

शुक्रिया आ. डॉ श्रीवास्तव साहब.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:07pm

शुक्रिया आ. नरेन्द्र सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:07pm

शुक्रिया आ. विजय शंकर जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:06pm

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 1:48pm

आ० नीलेश जी

बहुत उम्दा गजल . प्रवाहमय . मैं  तो गाता ही चला गया. कुछ शेर तो बहुत ही  लाजवाब हैं -

 

ये इल्तिज़ा है आपसे इस मुल्क के लिए  
दिल से ये नफरतों के ख़यालात काटिये.  
.
रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या  
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये   

Comment by narendrasinh chauhan on April 1, 2015 at 12:27pm

रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या  
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये  

खूब सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 1, 2015 at 11:04am
रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये ॥
सुन्दर ग़ज़ल है, बधाई , आदरणीय नीलेश नीर जी , सादर।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:25am
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. नीलेश जी। दाद कुबूल कीजिए

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