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कराहती है माँ गंगा

व्यथित है पतितपावनी
अपनी दशा पर आज
प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार
की है किसने दुर्गति ये
कौन है इसका जिम्मेदार ?

राजा, रंक हो या संत
दिया सबको समान अधिकार
सिंचित कर धरा को
भरा संपदा जिसने अपार
विष भर उसकी रगों में फिर
धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?

स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं
मुख में इक बूँद ले लोग
स्वर्ग गमन करते हैं
आँचल में उसी के शवों को छुपा
ढेरों मैल बहाया है
दामन पर उसके दाग ये किसने लगाया है ?

हरिहर प्यारी, ब्रह्मा की दुलारी
चलती थी जो मचलती, लहराती
पीड़ा देख उसकी अब
देवों का हृदय भी भर आया है
आखिर उसे इस हाल में किसने पहुँचाया है ?

दी है सद्गति जिसने, आज वह कराहती है
सुनो ना ! माँ गंगा तुम्हें पुकारती है,
माँ गंगा तुम्हें पुकारती है  ||

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित  

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Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:57pm

प्रिय प्रतिभा जी बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:57pm

बहुत बहुत आभार महर्षि जी .. कविता से उन्हें निजात नही मिलेगी  पर हम सब के प्रयास से शायद कुछ हद तक उन्हें राहत मिल जाय ...

Comment by Meena Pathak on March 21, 2015 at 7:55pm

आदरणीय डा० गोपाल नारायण जी,  रचना पर सराहना हेतु सादर आभार स्वीकारें 

Comment by Shyam Narain Verma on March 21, 2015 at 4:45pm
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 21, 2015 at 9:14am

आदरणीया मीना जी बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 21, 2015 at 4:39am
सुन्दर , प्रभावशाली , आदरणीय , बधाई, सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 20, 2015 at 6:12pm

बहुत सुन्दर ,,,गंगा माँ की पीड़ा ,,काफी गहरी है ,,आपकी इस कविता से शायद उन्हें निजात मिले ,हार्दिक बधाई  आ. Meena Pathak जी इस कविता हेतु |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 20, 2015 at 5:20pm

आ० मीना जी

गंगा ई करूण  दशा पर आपका प्रश्न स्वाभाविक एवं सामयिक है . सदर.

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