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मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो 

मेरे आँखों की पानी तुम हो 

मेरे ख्वाबों की रानी तुम हो 

मेरे दर्द की कहानी तुम हो 

हाँ तुम हो ,

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |

तुझसा कोई न आये

गर आये तो फिर न जाये 

तेरे बिन जिया न जाये 

ये दिल पाये जिसे पाये ,तुम हो 

हाँ तुम हो 

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |

हर जगह से था मैं हारा 

था मैं वक़्त का मारा

मुझे मिला तेरा किनारा  

बन गया जो मेरा सहारा ,तुम हो 

हाँ तुम हो 

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |

मेरे सुख-दुःख में भागीदारी 

मोहब्बत में मिली सवारी 

फीकी है ये दुनिया सारी

घर को स्वर्ग बना दे नारी ,तुम हो

हाँ तुम हो

 मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो ||

*****************************************

"मौलिक वा अप्रकाशित "

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Comment by maharshi tripathi on March 17, 2015 at 5:36pm

मेरा भ्रम दूर करने हेतु आपका हार्दिक आभार आ.डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:01pm

प्रिय महर्षि

ध्यान दो मैंने - आँखों का पानी तुम हो -----नहीं कहा  I जब आँख का पानी तुम हो वही अर्थ दे रहा है तब हम आँखों का पानी  क्यों कहे I

और आँखों की पानी तो कतई सही नहीं है  I आँख अपने सारे पर्यायवाचियो में भी पुल्लिंग है  I  स्नेह I

Comment by maharshi tripathi on March 16, 2015 at 5:42pm

आ. गिरिराज भंडारी जी व आ. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,,,,,मेरे हिसाब से ये सही है ,आ.मेरा भ्रम दूर करें |


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:21am

आदरणीय महर्षि भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , बधाइयाँ ॥ जो कहना चाहता था , आ. गोपाल भाई कह चुके हैं ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 10:18pm

महर्षिजी

मेरी  आँख का  पानी तुम हो ------------------ सही होगा .

Comment by maharshi tripathi on March 14, 2015 at 4:49pm

आ.बड़े भाई krishna mishra 'jaan'gorakhpuri   जी ,,,इस मंच के साथ -साथ आप का सहियोग मेरी अनमोल उपलब्धि आ.Shyam Mathpal जी , Hari Prakash Dubey जी ,Dr. Vijai Shanker  जी , Shyam Narain Verma जी ,रचना पसंद आने और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु कोटि कोटि प्रणाम |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 14, 2015 at 4:18pm

भाई महर्षि! बहुत बहुत बधाई!इस प्रस्तुति पर!!बहुत ख़ूब!ज्यादा दिन नही हुए! मुझे अपने शुरूआती दिनों की याद आ गई,कवि-कविता गीत-गज़ल सबका मूल यही स्वत: निकलते हृदय के उद्गार ही है,बस इसी को पकड़े रहिये!!गाते रहिये-गुनगुनाते रहिये! बाकी जिन्दगी खुद ही सिखा देती है!!सीखना जीवनपर्यन्त चलता रहता है!आप और मैं भी बहुत भाग्यशाली है जो हमें इतनी कम उम्र में इतना खुबसूरत मंच मिला है!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 4:17pm

भाई  महर्षि त्रिपाठी जी, सुन्दर प्रयास है ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 12:19pm

Aadarniya Maharish ji,

Arpan wa samarpan liye huwe  bhawanapura rachna ke lie deron badhai.

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 14, 2015 at 11:47am
हर जगह से था मैं हारा
था मैं वक़्त का मारा
मुझे मिला तेरा किनारा
सुन्दर , मार्मिक , बधाई आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , सादर।

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