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रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं

बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |

बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत
जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |


जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |

पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |

सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |

बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||

**********************************
"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on March 14, 2015 at 6:12pm

आ.प्रशांत त्रिपाठी बहाई जी ,,रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने हेतु आपका आभार |

Comment by prashant tripathi on March 13, 2015 at 11:16pm

wah maharshi ji..aapne bhut accha likha h..ummeed h aap aise hi likhte rhenge...bhut khub tripathi ji,...

Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 8:27pm

आ. खुर्शीद जी आपने मेरी रचना को सराहा ,,,मन आनंदित हुआ ,,आपका आभार सादर |

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 7:46pm

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन ,,,,,विशेष दाद........

जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |

पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |

सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |

Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 6:19pm

आप सभी विद्वानों का ,,मेरे पहले प्रयास पर उत्साहवर्धन हेतु शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 4:27pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय महर्षि भाई , हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 12:02pm

सुंदर भावपूर्ण प्रेम में आसक्त और बेहद ही कोमल रचना पर हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:21am
भावपूर्ण प्रस्तुति पर बधाई।
Comment by maharshi tripathi on February 28, 2015 at 5:33pm

रचना पर प्रोत्सहन देने हेतु आप सभी गुनीजनों का हार्दिक आभार ,,,मैंने गजल लिखने की कोशिश की है आशा है ,,अपने गुरुजन\भाईओं की मदद से सीख सकूँगा,,पुनः बहुत बहुत आभार |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 9:57am

भाई महर्षि त्रिपाठी जी बहुत खूब /जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं/ सुन्दर रचना , बधाई आपको !

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