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हास्य-व्यंग्य गीत,
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बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल !!

बन्दर डण्डॆ लियॆ हाँथ मॆं,अब शॆरॊं कॊ हाँकॆं,
भूखी प्यासी गाय बँधी हैं, गधॆ पँजीरी फाँकॆं,
कॊयल कॊ अब कौन पूछता,कौवॆ हैं अनमॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

साँप नॆवलॆ मिल कर खॆलॆं, दॆखॊ आज कबड्डी,
पटक पटक कर गीदड़ तॊड़ी,आज बाघ की हड्डी,
ताक-झाँक मॆं लगी लॊमड़ी, बदल रही भूगॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

टुकुर टुकुर सब जनता दॆखॆ, मंत्री कॆ गुलछर्रॆ,
जिनकॊ मैक- डाल थॆ समझॆ,निकलॆ दॆशी ठर्रॆ,
श्वॆत - वस्त्र मॆं छिपा रखी है, इ्ननॆं अपनी पॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

उल्टी बहती आज यहाँ पर, राजनीति की गंगा,
खादी की चादर कॆ भीतर,चरित मिला अधनंगा,
भीतर सॆ सब क्रूर- कसाई, मुख पर मीठॆ बॊल !!  रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

ऎसी तैसी हुई दॆश की, गगन चढ़ी मँहगाई,
अबकॆ तुलशीदास यहाँ पर,खाक़ लिखॆं चौपाई,
चनॆ चिरौंजी बिकॆं यहाँ पर, आज एक ही मॊल !!  रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

बच्चॆ बिस्किट खातॆ हैं पर, कुत्तॆ दूध मलाई,
अम्मा बाबू खाट पड़ॆ हैं, मिलती नहीं दवाई,
पढ़ी लिखी पीढ़ी तू अपनॆ, दिल कॊ ज़रा टटॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

करॆं दलाली आज दॆश की, दॆश भक्त कहलातॆ,
राजगुरू सुखदॆव भगत कॊ,आतंकी यही बतातॆ,
अब तक नहीं समझ मॆं आई, ऊँची नींची तौल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,

कियॆ सुहानॆ वादॆ इन नॆं, लॆ कर वॊट उड़न-छू,
पाँच साल फिर नहीं रॆंगती,दॊनॊं कानॊं मॆं जूँ,
आज़ अनाड़ी नॆता हम कॊ, बना रहॆ बकलॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,




"राज बुन्दॆली"

मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,,


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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 10, 2015 at 9:35pm
बहुत सुन्दर , हास्य है, क्योंकि सच है , बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 9:05pm

वाह वाह कवि  राज बुन्देली जी,मजा आ गया ये हास्य व्यंगात्मक रचना पढ़ के बहुत बहुत हार्दिक बधाई >आ० डॉ० गोपाल जी के सुझाव भी सराहनीय हैं.    

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:34pm

प्रतिभा जी,,,,

इस स्नेह को नमन

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:15pm
सत्यम जी
बहुत बहुत धन्यवाद इस स्नेह हेतु,,
Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 7:44pm

Aadarniya Raj Bundeli Ji,

Aaaj Ki rajniti par bahut sundar rachna hai. Bahut badhai.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 7:25pm

भाई,,,,,maharshi tripathi जी,

बहुत बहुत आभार आपका,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 7:24pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी

इस स्नेह हेतु,,,,,हार्दिक आभार

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 7:23pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

प्रणाम,,,आपके सुझाव सिरोधार्य करते हुये,,यथा-शक्ति मैने परिमार्जन किया है एक बार पुन: देख लीजियेगा,,,, कृपा बनाये रखियेगा मैं आजीवन सीखना चाहता हूं,,,,,,,नमन

Comment by maharshi tripathi on March 10, 2015 at 6:49pm

ओबियो के इस मंच पर इस तरह की हास्य कविता पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ ,,आपको बहुत बहुत बधाई आ.राज बुन्देली साहब |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 10, 2015 at 6:40pm

 आदरणीय राज बुन्दॆली जी ,बहुत ही सुन्दर  गीत रचना है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

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