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रख दिए उसने

छोटी सी अटैची में   

कुछ कपडे सहेज के

जो जरूरी हैं सफ़र के लिए

क्योंकि वह पत्नी है जानती है

मेरी आवश्यकताये  

 

मै जानता हूँ

उसमे क्या होगा

एक जोड़ी कपडे, कच्छा-बनयाईन

परफ्यूम की शीशी, शेव का सामान

एक टूथ-ब्रश, जीभी और पेस्ट

छोटा सा कंघा, फकत एक शीशा

लंच का पैकेट भी  

 

है कुछ मेरी

अपनी भी तैयारियां 

पसंद का रूमाल सादा और साफ़

जरूरत से कुछ अधिक चमड़े का पर्स

नजर का चश्मा, नियमित दवाइयां

जरूरी कागजात और दो चार पेन

चल पड़ता हूँ निर्दिष्ट सफ़र पर

द्वार तक आती है मुझे वह भेजने -

‘अच्छी तरह जाना, पहुँचते ही फोन करना

जल्दी ही लौट आना’

 

 

मै आश्वस्त हूँ

पथ चाहे कैसा हो पाथेय साथ है

मन ही मन हँसता हूँ फिर यह सोचता हूँ  

छोटे से सफ़र की भी इतनी सी टेंशन

और सिर्फ मै ही नहीं पत्नी भी शामिल है

मेरे इस टशन में

 

पर मन बावरे !

क्या कभी सोचा है

एक दिन जाना है अनजान पथ पर

अजाने सफ़र पर अनजानी मंजिल पर

जहाँ सिर्फ जाना है वापस नहीं आना है

एक छोटे सफ़र की इतनी तैयारी की

तो उस यात्रा की क्या तैयारी है ?

 

मन निर्वाक्

मै भी अवाक् !

क्या तैयारी की ----? कुछ भी तो नहीं

और इस यात्रा का क्या है भरोसा

कभी भी किसी क्षण शुरू हो सकती है

बिना बताये बिना कोई अवसर दिए

यह महायात्रा ---

 

इसकी तैयारी

तुम्हे ही करनी थी

इस घोर यात्रा में कौन साथ आता है

भाई न बहन, पत्नी न बेटे

इस पथ का पाथेय यात्री स्वयं जुटाता है

पत्नी भी नहीं करती कोई सहायता

कर ही नहीं सकती

  

तो-------

क्या किया तुमने ?

या बस जिया तुमने

कितने वर्ष ईश्वर ने तुम्हे प्रदान किये

कितने ज्ञान और कर्म-इन्द्रिय दान किये

बार-बार चेताया वार्धक्य लक्षण से

समय अब कम है अटैची संभालो

जीवन में संचित किया

पाथेय डालो 

 

जानते है सब

मानते है सब

पर कोई संबल जुटा नहीं पाता है

अंत समय आने पर जीव पछताता है

मुठ्ठी भरकर आने वाला खाली हाथ जाता है

उनमे कोई बेनाम, कोई सूर-तुलसी,

कोई कबीर कहलाता है

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 11:25am

आ० मठपाल जी

आपका बहुत बहुत आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 11:24am

आ० विजय सर !

दर्द के बारे में तो कहना कठिन है  i तुलसी बाबा ने लिखा है --जनमत मरत दुसह दुःख होई

नियर डेथ के अनुभव् कई तरह की बाते करते है  i सच्चाई तो ईश्वर ही जाने i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 11:20am

प्रिय महर्षि

आभार प्रकट करता हूँ i स्नेह i

Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 10:09am

Aadarniya Dr.Gopal Srivastav Ji,

Manviya sambhandon tatha Uss lambi yatra ka bahut hi marmik wa hriyday sparshi chitran kiya hai. Man ko choo gai. Bahut dhanyabad.

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 10, 2015 at 9:54am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , बहुत ही गंभीर प्रस्तुति है. एक निवेदन करूँ ,
जब आये थे
तो कौन से दर्द के एहसास थे ,
टोका किसी ने कि खाली हाथ थे ,
जब जायेंगें तो कौन सा दर्द ले जाएंगे ,
खाली हाथ आये थे , खाली हाथ जायेंगें।
सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 6:19pm

शुरुवात इतनी सहज ..पर अंत काफी मार्मिक ,,,,,बहुत सुन्दर वर्णन आ.गोपालनारायण जी ..आपको हार्दिक बधाई |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 9, 2015 at 12:06pm

प्रिय सोमेश

हार्दिक आभार i

Comment by somesh kumar on March 9, 2015 at 9:32am

तैयारी इस सफ़र से उस सफ़र की ओर 

यहाँ सब साथ मेरे वहाँ ना कोई और 

जीवन की इस यथार्थ को दार्शनिक रूप से प्रस्तुत करती बेहद कुशल रचना |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 8, 2015 at 7:29pm

प्रिय कृष्ण

स्नेह i वार्धक्य का अर्थ है बुढ़ापा  i शुभ हो i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 8, 2015 at 7:27pm

आ० हरि प्रकाश जी

आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया  का सतत  आभारी हूँ i

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