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भरत वो हो नहीं सकता - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

चुभन मत  याद  रखना  तुम मिली जो खार से यारो
रहे  बस  याद  फूलों  की  मिले   जो  प्यार  से  यारो

*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

*****
न समझो  हक  तम्हें  तब तक  सुमारी दोस्तो में है
रखो गर  दुश्मनी  भी  तो  मिलो  अधिकार से यारो

*****
हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो

*****
भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

*****
रही  है  रीत  स्वागत  की  अगर  पाहुन  कोई  आए
तमस  अपमान   पाए  क्यों  हमारे  द्वार  से  यारो

*****
न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो

*****

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 12:44pm

आ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद . आशा है स्नेह बनाए रखेंगे 

Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:26am

हर बार की तरह हर अशआर इतनी गहरी बात कहता है कि केवल कलम और रचनाकर के लिए साधुवाद ही प्रेषित किया जाए |


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 8:40am

भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो  --  लाजवाब शे र !! ग़ज़ल के लिये और इन अशआर के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 2, 2015 at 11:50pm

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम

गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

सुन्दर रचना!! बधाई आदरणीय!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 2, 2015 at 8:58pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई निवेदित है 

सुमारी/को लेकर सशंकित हूँ. 

हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो......... इस शेर के मिसरा-ए-उला और सानी तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ. 

ये अशआर बहुत बेहतरीन हुए है- 

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो...... वाह वाह 

Comment by MAHIMA SHREE on March 2, 2015 at 7:18pm

न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो...बहुत खूब धामी सभी अश्आर संदेशपरक हैं... बधाई प्रेषित है

Comment by maharshi tripathi on March 2, 2015 at 5:18pm

वैसे तो पूरी गजल पर आपको बधाई पर उन पंक्तिओं पर ढेरो दाद .......

हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो

*****
भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

*****.......बहुत सुन्दर आ.धामी जी |

....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 4:01pm

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो.....वहुत सुंदर अशआर. बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 2:42pm

चुभन मत  याद  रखना  तुम मिली जो खार से यारो
रहे  बस  याद  फूलों  की  मिले   जो  प्यार  से  यारो

*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो--------------------बेहतरीन धामी जी i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:12pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित ! सादर 

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