For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूरी कॉलोनी वालों की बेफ़िक्र नींद का राज़ था - रानी,  वो पालतू न होते हुए भी कॉलोनी में रात के समय भौंक भौंक कर,  किसी भी अपरिचित को नहीं घुसने देती थी.  बदले में कॉलोनी के लोग भी रानी को खाने के लिये कुछ न कुछ दे देते थे. समय के साथ रानी ने गर्भधारण भी किया, लेकिन उन दिनों में उसकी थकान के बाद भी उसे खाने को कम ही मिलता.  जब उसे प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई, तब भी वो अकेली थी. उसने पांच बच्चों को जन्म दिया,  प्रसव के पश्चात्, रानी को बड़ी तेज़ भूख लगी, लेकिन आज उसके पास खाने को  किसी ने कुछ रखा ही नहीं था. इंसानों की कॉलोनी में जब सुबह हुई तो कॉलोनी के कई व्यक्ति रानी के पास आकर उसके चारों सुंदर बच्चों को सहलाते हुए कह रहे थे.. “ अब हमारी कॉलोनी चारों तरफ से सुरक्षित रहेगी..”

 

  

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 964

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 10:03pm

आदरणीय बागी जी, आपकी बधाई सिर आँखों पर. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना से मन को बहुत ख़ुशी व् मनोबल मिला.आपका हृदयतल से आभारी हूँ.  आपकी कही गई कहावत से मैं पूर्ण सहमती रखता हूँ. शायद माँ का प्रसव के पश्चात जानलेवा भूख में बच्चे को खा जाना, शेष बच्चों के लिए जीवन की सकारात्मकता को भी दर्शाता है.

सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2015 at 9:25pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, आपकी लघुकथा जो सीधे कहती है उससे अधिक बगैर कहे कह देती है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई. आपकी इस कथन से कि "एक विवश मूक माँ, प्रसवपीड़ा के पश्चात भूख  के दौरान अपने एक बच्चे को खा चुकी थी." असहमत होते हुए यह कहना चाहूँगा कि कुत्ता प्रजाति के बारे में यह कहावत प्रचलित है कि कुत्ता...कुत्ता को नहीं खाता, इधर कुत्ता प्रजाति में भी वो तो एक माँ है.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 9:15pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी, दरअसल उस समय दफ्तर में था , बीच में कुछ काम भी कर रहा था , फिर इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाया की  ५ से ४ बच्चे कैसे रह  गए ? पुन: बधाई ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 2, 2015 at 9:04pm

आदरणीय जितेन्द्र जी विडम्बना को उभारने के लिए पांच में से चार शेष रहे,की एक बारीक रेखा खिंची है और  कथ्य की जो परिणिति सामने आई है उसने एक झन्नाटेदार झटका दिया है भीतर तक हिला दिया. 

Comment by MAHIMA SHREE on March 2, 2015 at 7:44pm

व्यंगात्मक मार्मिक प्रस्तुती.. बहुत-2 बधाई आपको,...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 6:44pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी, शायद आप लघुकथा के मर्म से अछूते रह गए.जिसमें  एक विवश मूक माँ, प्रसवपीड़ा के पश्चात भूख  के दौरान अपने एक बच्चे को खा चुकी थी. बदरहाल आपकी बधाई हेतु आभारी हूँ

सादर!

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 5:43pm
मतलब के लोगों पर व्यंग अच्छा है, प्रिय जीतेन्द्र जी बधाई, सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 2, 2015 at 5:16pm

बहुत अच्छी लघुकथा आ.जीतेन्द्र जी ,,,सादर बधाई आपको |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 2:44pm

जीतू जी

बहुत बढ़िया व्यंग्य है  i वाह i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:10pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी , सुन्दर लघुकथा ....“इंसानों की कॉलोनी में जब सुबह हुई” ..... वाह क्या बात है पर इस कथा में और जान आ जाती अगर रानी मर गयी होती  , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service