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1212 1122 1212 112/22

दबी हर आह तेरा इश्क़ भी दबा ही सही
जुदा है तेरा ये अंदाज़ तो जुदा ही सही

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही

खयाल तेरी तमन्ना का है मेरे दिल में
सो रहनुमाई को अब तेरा मशविरा ही सही

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by umesh katara on March 2, 2015 at 7:46am

बधाई सर वाह अच्छी गजल कही आपने
मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 6:57am
मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही ॥
बहुत ही सुन्दर आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बधाई , बधाई, बधाई, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2015 at 11:57pm

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही.. .. ..  . क्या बात है !

शिज्जू भाई, इस ग़ज़ल के लिए भरपूर दाद लीजिये.

शुभ-शुभ

Comment by Nirmal Nadeem on March 1, 2015 at 11:12pm
बहुत खूब वाह वाह वाह बहुत खूब
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 1, 2015 at 10:56pm

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही

वाह! वाकई नि:शब्द!! गजल में इतनी गहराई बिना खुद को भूले नही आती आ० शिज्जू जी!!अभिनन्दन!!

Comment by ajay sharma on March 1, 2015 at 10:03pm

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही........speechless


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 9:03pm

दो शेर एकदम से दिल छू गए ...

//मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही// क्या खुबसूरत ख्याल है वाह वाह.

//हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही// बहुत खूब, जबरदस्त कहन.

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई भाई सिज्जू जी.

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 7:52pm

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

इस बेहतरीन गज़ल पर दिली दाद कबूल करें बड़े भाई जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:35pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

मतला बेहतरीन हुआ है वाह वाह 

दबी हर आह तेरा इश्क़ भी दबा ही सही
जुदा है तेरा ये अंदाज़ तो जुदा ही सही............. वाह वाह 

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही................ वाह वाह सुन्दर 

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही................ क्लासिक शेर 

खयाल तेरी तमन्ना का है मेरे दिल में
सो रहनुमाई को अब तेरा मशविरा ही सही......... वाह वाह बेहतरीन शेर 

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही..... बहुत अच्छा शेर 

क्लासिक ग़ज़ल हुई है शिज्जु भाई जी ... बिलकुल उस्तादों वाली ग़ज़ल.....ग़ालिब चचा की ग़ज़लों सा आनंद आया.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 1, 2015 at 7:07pm

आ० शिज्जू जी

बेहतरीन गजल i आपको बधाई  i  सादर i

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही

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