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"अरी भागवान, क्यों हमेशा कामवाली के पीछे हाथ धोकर पडी रहती हो ?"
"आजकल इसका दिमाग बहुत ख़राब हो गया है।"  
"आखिर बात क्या हुई?"  
"एक हो तो बताऊँ। बिना बताये छुट्टी मार जाती है, काम करते हुए मौत पड़ती है इसे, पर एडवांस हर महीने चाहिए मुई को"
"अरे शान्त रहो, वो सुन रही है।"     
"सुनती है तो सुने, गर्मियों के बाद उठा कर बाहर फ़ेंक दूँगी इसको।"
"मगर कामवाली के बगैर घर के इतने सारे काम कौन करेगा ?"
"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:06am

आदरणीय योगराज सर बहुत ही सुन्दर लघुकथा, सशक्त रचना है, वर्तमान मैं अक्सर समाज में ऐसा ही होता देखा जा रहा है , आदरणीय गोपाल सर ने सही शब्द कहा टिपिकल इंडियन सास ,मानसिकता पर सटीक और तीखा व्यंग्य पर आजकल बहू आकर उल्टा कर देती हैं , सास ही कामवाली बनकर रह जाती है  ! आपको हार्दिक बधाई! सप्रणाम !

Comment by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 9:41am

"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"

आदरणीय योगराज सर ,सभी की रचनाओं को को स्थान देने एवं पोर्टल की सामग्री को मैनेज करने के कार्य द्वारा आपकी साहित्य-सेवा वंदनीय है |मुझ जैसे कई उतावले स्वघोषित साहित्यकार अपनी रचना पोस्ट करवाने के उतावलेपन में शीर्षक तक सही बॉक्स में नहीं डालते ,फॉण्ट तक सही  चयन नहीं करते ,उचित स्पेस तक नहीं देते और टाइपिंग त्रुटि करके बार बार एडिट करके आपका कार्य बढ़ा देते हैं ,इस सबके बावजूद आपके साहित्य में उत्कृष्ठता और श्रेष्टता आपकी  सृजनात्मक निरंतर बनी रहना ,एक चमत्कार है |प्रस्तुत लघुकथा इसी की एक बानगी है |भारतीय समाज में नारी ही नारी की शोषक है ,अगर नारी ,नारी का संबल बन जाये तो उसे पुरुष पर आश्रित रहकर दासता  न भोगनी पड़े |इतनी सुघड़ लघुकथा हेतु आपको हार्दिक बधाई|सादर अभिनन्दन  

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 6:57am
कुछ सास ऐसी भी होती हैं , व्यंग करती हुयी अच्छी लघु - कथा , बधाई ,आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 12:22am
आदरणीय योगराज सर, बहुत दिनों बाद आपकी लघुकथा पोस्ट हुई है। प्रतीक्षा होती है आपकी लघुकथाओं की। इंतज़ार का फल मीठा होता है, आपकी लघुकथा पढ़कर लग रहा है। मानसिकता पर सटीक और तीखा व्यंग्य। बधाई निवेदित है इस सफल लघुकथा के लिए।
Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 10:00pm

सही कहा आ. विनयकुमार जी ने ,,,,क्या करारा व्यंग दिया है आपनें ,,, अपनी इस लघुकथा के माध्यम से ,,आपको बहुत बहुत बधाई आ. योगराज जी |

Comment by somesh kumar on February 24, 2015 at 9:52pm

यूँ तो नई पीढ़ी में जहाँ बहू सर्विस वाली आ रही हैं ये बात उल्टी पड़ती दिखती है परंतु उच्च वर्ग में पारिवारिक शांति के लिए बहू-रूपी नौकरानी पाने के लालसा भी बलवती हो रही है |उस दृष्टी से एक कटू सत्य बयान करती है ये लघुकथा |अच्छी लघुकथा पर प्रणाम है गुरुदेव |


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Comment by rajesh kumari on February 24, 2015 at 8:51pm

सास  की यही मानसिकता ,जो मूवीज में तो और बढ़ चढ़ कर दिखाते हैं ,के कारण ही घर बिगड़ते हैं जहाँ नारी ही नारी की दुश्मन हो वहाँ समाज के सुधार की कैसे अपेक्षा कर सकते हैं भला ,लघु कथा अपना सन्देश देने में कामयाब है ,बहुत बहुत बधाई आ० योगराज जी ,बहुत दिनों बाद आपकी लघु कथा पढने को मिली. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 24, 2015 at 2:10pm

प्रिय अनुज

विदेशो में भारतीय सास को  INDIAN TYPICAL SAS कहा जाता है i वह इसी मानसिकता के कारण  i भले हर सास ऐसी न हो पर प्रतिशत  ऐसी ही सासों का बड़ा है i  उच्च कोटि का सामाजिक व्यंग्य है i बहू आ रही है तो नौकरानी की क्या जरूरत है i नई नौकरानी तो आ ही रही है i  वाह---- बधाई हो i सादर i

Comment by विनय कुमार on February 24, 2015 at 1:53pm

मानसिकता पर करारा व्यंग , बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय योगराज प्रभाकर जी..

Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2015 at 1:11pm
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

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