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माँ तू सुनती क्यों नहीं

माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
वो घुटनों पे चलना
वो आँखों को मलना
वो मिटटी को खाना
बिना सुर के गाना
वो चिल्ला के कहना
मुझे रोटी देना
आज फिर चूल्हे पे पानी
तूँ पकाती क्यों नहीं
माँ तूँ सुनती क्यूँ नहीं
वो तेरी हथेली
में कितनी पहेली
वो मेरा कसकना
वो तेरा सिसकना
वो ममता की छाया
मुझे याद आया
वो मुस्कान तेरी
वो पेशानी मेरी
आज फिर से बोशा
सजाती क्यूँ नहीं
माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार चौबे मनु

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 1, 2015 at 12:25pm

सुंदर रचना, बहुत सुन्दर प्रस्तुति है, आदरणीय विजय जी. बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:30am
आदरणीय आपने तो बचपन की याद दिला दी।।हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:02am

आदरणीय विजय जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vijay on January 31, 2015 at 10:45pm
सभी गुनी जनों को प्रणाम एवं उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
Comment by Shyam Mathpal on January 31, 2015 at 2:51pm

Aadarniya vijay ji,

Maan ko samparpit ye rachna bhawon aut prot hai. Hardik badhai.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 31, 2015 at 2:14pm

माँ को हृदय से याद किया आपने i सादर i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2015 at 12:19pm

सुंदर रचना, आदरणीय विजय जी. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 31, 2015 at 5:03am

बहुत सुन्दर रचना ... हार्दिक बधाई 

Comment by ajay sharma on January 30, 2015 at 10:51pm

bahut hi sunder rachna ke liye dhanyawad 

Comment by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:43pm

माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी

सुंदर भाव भाई जी ,माँ नाम के महाकव्य के बारे में जो कहा जाए कम है|फिर भी अपने अनुभवों के आधार पर माँ की ये वन्दना सम्मानीय है |

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