For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में

२१२२  २१२२   २१२२२

 

रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में

चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में

 

धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं

रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में

 

साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू

छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में

 

खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से

वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में

 

है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब

क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में

 

हो गयी काफूर अब मुस्कान ओंठों से

हौसला दिखता नहीं अब आबशारों में

 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 9:32am

साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू

छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में

 आदरणीय आशुतोष जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है |दोस्तों के साथ रहते दुल्हन की डोली का लूट जाना थोड़ा अतार्किक है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2015 at 12:06pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बढिया ग़ज़ल कही है , दिली दाद कुबूल करें । आ. शिज्जु भाई जी से मै भे सहमत हूं --

है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब

क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में    --  तार्किक रूप से ये शे र सही नहीं लग रहा है ।

Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:12am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय आशुतोष जी।।हार्दिक बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:53am

आदरणीय आशुतोष जी आपकी रचनायें अब बेहतर से बेहतर होती जा रही है इसका उदाहरण ये ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको

है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में - बस यहाँ देखिये कहारों में अहबाब हैं तो दुल्हन महफ़ूज़ क्यों नहीं ये समझ नहीं पा रहा हूँ।
क्षमा सहित

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 30, 2015 at 10:51am

आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपनी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपके सवाल के जवाब में मैं सिर्फ ये कहूँगा की जरूरी नहीं मैं सही हूँ ..पर पर्यावaiरण में ओजोन लेयर की बजह से जिसका कारण प्रदूषण है से तापमान के बढ़ने के कारन न तो बर्फ जम पा रही है और न पानी की बूंदे संघनित हो पा रही हैं जिसकी बजह से झरनों में पानी का वो प्रवाह या यों कहने जीवन की चाह परिलक्षित नहीं होती बैसे ही कुछ जीवन में देखने को मिल रहा  है आतंकवाद जैसा कृत्य जीवन को शांति प्रदान करने वाली संस्कृति और प्रेम की ओजोन लेयर को छिन्न भिन्न कर रही है परिणाम स्वरूप अब सब जीवन जी तो रहे हैं पर वो मुस्कान ओंठो से नदारत है .मैंने इस भाव से लिखा था .यदि कोई गलती हो तो संकोच मत करियेगा .मेरा मार्गदर्शन अवश्य करियेगा ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 30, 2015 at 10:43am

आदरणीय गुमनाम जी रचना आपको पसंद आयी ..मेरा लेखन सार्थक हुआ ..आपको तहे दिल धन्यवाद सादर

Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:27pm

Aadarniya Dr.Mishra Sb.

Khubsurat gazhal ke liye dheron badhai. Dil ko chune wali rachna.

Comment by दिनेश कुमार on January 29, 2015 at 6:36pm
वाह वाह ...सर जी। बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 12:04pm

है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब

क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में.......

बहुत ही गहरी बात कही आ० भाई आशुतोष जी , हार्दिक बधाई l

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 29, 2015 at 9:35am

वाह! आदरणीय डा. आशुतोष जी, बेहद खूबसूरत गजल

साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू

छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में

 

खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से

वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में........बहुत खूब. विशेष बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गिरह भी अच्छी लगी है। हार्दिक बधाई।"
27 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।  6 सुझाव.... "तू मुझे दोस्त कहता है…"
30 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी, //अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए, अब जब कि जान जाना…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//'इश्क़ ऐन से लिखा जाता है तो  इसके साथ अलिफ़ वस्ल ग़लत है।//....सहमत।"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी, बहुत धन्यवाद।  1 अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए,…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ख़ुदकुशी आ गई है आदत में अब मज़ा आएगा बग़ावत में /1 आदत मतलब…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  2122 1212…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service