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अराजक(लघुकथा )

“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा

“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”

“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया

“नहीं!”वो मायूस हो गया

“ तो भाई पीछे  जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला  

“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा

“ व्यवस्था से पंगा लेने वाला आम आदमी मत बन –अराजक कहलाएगा| “पुलिस वाले ने उसका हाथ पकड़ लिया

“और ऐसे भगोड़ा बोलोगे |”वो हाथ झटकते हुए खड़ा हो गया |  

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 8:43pm

सोमेश जी

लघु कथा की अंतिम लाइन में प्रायः  जबरदस्त पंच होता है  i आपकी कथा में 'और ऐसे भगोड़ा बोलोगे 'में पंच नहीं है  न ही बहुत व्यंग्य न ही बहुत सार्थकता  जो श्रोता  को उद्वेलित कर दे i पर प्रयास करते रहिये i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 7:15pm

सोमेश भाई सुन्दर प्रयास, हार्दिक बधाई ! बाकी धीरे -२ प्रयास से और बेहतर से बेहतर हो जाएगा ! सादर 

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 27, 2015 at 2:52pm

बतौर विषय लघुकथा अच्छी है आदरणीय सोमेश जी. सुधिजनो के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है.

Comment by Shyam Mathpal on January 27, 2015 at 2:35pm

priya somes ji,

Acchi lagu katha  hai. Aam aur Khas ka fark mitne main kafi wakt lagega.

Badhai ho.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 8:12am

आदरणीय सोमेश भाई , बातें कुछ कुछ समझ में आईं , लघुकथा के शिल्प का ज्ञान नहीं है , पर आदरणीय विनोद भाई के विचारों का अनुमोदन करता हूँ , जल्दबाज़ी हो गई शायद । लघुकथा के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

                                     

Comment by somesh kumar on January 26, 2015 at 11:43pm

sukriya mithlesh evm vijay bhai ,Vinod Khngwal bhai ji aap ki prtikriya shi hai shayd is lghukha pr thodhi si mehnt krne ki jrurt thee .isika edited version maine AAM ADMI ke naam se f-book pe dala hai ,shyad aap ko psnd  aai

Comment by विनोद खनगवाल on January 26, 2015 at 10:58pm
आदरणीय सोमेश जी। बहुत जल्दी में लिखी गई है ऐसा लगता है कुछ क्लीयर सा नहीं लग रहा है। आखिर कहना क्या चाहा गया है?
Comment by vijay on January 26, 2015 at 10:22pm
बढ़िया लेखनी के लिए बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 9:48pm

आदरणीय सोमेश भाई जी अच्छी लघुकथा हुई है ... बधाई 

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