For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरू दक्षिणा (लघुकथा) :कान्ता राॅय

" वाह !! बहुत खूब रितेश गुप्ता , तुमने संस्था का नाम ऊँचा किया है । हम सबको तुम पर गर्व है । " पीठ थपथपाकर मोहित सर ने जब शाबाशी दी तो रितेश दर्प से भर उठा ।
" सर , सब आपके मार्ग दर्शन का ही नतीजा है । "
" फिर तो मुझे गुरू दक्षिणा भी मिलना चाहिए तुम से । " मोहित सर की बाँछे खिल उठी ।
" क्या बात करते है सर ...? लाखों रूपयों की फीस के बाद अब यह गुरू दक्षिणा भी ___ ...? "

कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on January 27, 2015 at 2:09am

बहुत सुन्दर और सारगर्भित लघुकथा , बधाई स्वीकारें..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:29pm

आज हर क्षेत्र में व्यवसायिकता ने पाँव पसार लिए हैं. अपना सन्देश छोडती सफल लघुकथा पर बधाई आदरणीया कांता जी. गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें आपको

Comment by kanta roy on January 26, 2015 at 9:06am
आप सबको बहुत बहुत आभार आ.राहुल दाँगी जी , आ. हरि प्रकाश दुबे जी , आ.डाॅ.विजय शंकर सर जी , आ. मिथिलेश वामनकर जी ,आ.इंजी. गणेश जी "बागी " जी , आ. सौरभ पांडेय जी , आ.सोमेश कुमार जी , आ.ओमप्रकाश क्षत्रिय जी मेरा हौसला वर्धन के लिए ।

शिक्षा क्षेत्र में फैली हुई व्यवसायिकता का महाजाल जो अब हर जगह दिखाई देने लगा है । संस्थान वाले बच्चों को फाँसने के लिए नित नये नये प्रलोभन देते रहते है जो हकीकत से कोसों दूर होती है ।छात्रों की संख्या उनके लिए मायने रखती है ना कि उनकी योग्यता । आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 8:49am

वाह आखिर में सही जगह चोट की है आपने बहुत बढ़िया 

Comment by Omprakash Kshatriya on January 25, 2015 at 7:02pm

Kकांता जी 

आप की लघुकथा शानदार है . बधाई .

Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 5:20pm

विडम्बना यही है कि हर चरित्र के लोग हर संस्था में हैं |पर समाज और संस्था से हि लोग आगे बढ़ते हैं |और विविध चरित्र के लोग अपने जैसे मूल्यों को पोषित करते हैं ,आगे बढ़ाते हैं ,|सच्चाई को बड़ी साफगोई से व्यक्त किया आप ने |बधाई इस सद्प्रयास पर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 25, 2015 at 5:01pm

वाह वा, वाह वा ! कमाल !
आजके शिक्षा-संस्थानों की सच्चाई मुखर हो कर सामने आयी है. मुझे आपके कहे पर कोई सुझाव नहीं देना, आदरणीया. यह एक संयत प्रस्तुति है.

भाई गणेश जी, आपके सुझाव से जिस सात्विक वातावरण का निर्माण हो रहा है उसके लिए यह लघुकथा तैयार नहीं है. यह कथा जो कहना चाह रही है ह ऐसे ही स्पष्ट है. वातावरण को अनावश्यक सात्विक न किया जाय.

शिक्षा के व्यावसायिक पहलू को बखूबी उभारती हुई इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया.
सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 2:07pm

हाँ रितेश बिलकुल, मुझे तुमसे फ़ीस के अतिरिक्त "गुरु दक्षिणा" भी चाहिए, तुम्हारे साथ एक ग्रुप फोटो, ताकि तुम हमेशा मुझे याद रहो. 

आप अपनी लघुकथा में अगर यह पक्ति जोड़ दे तो आपकी पूरी लघुकथा ही बदल जायेगी.

गुरु दक्षिणा का अर्थ आवश्यक नहीं कि महंगे गिफ्ट या नगद ही हो. आपकी लघुकथा में कही यह प्रतीत नहीं होता कि गुरु वाला पात्र  लालची है, हां यह जरुर भान हो रहा है कि शिष्य की सोच वैसा है. एक बात और 'रितेश गुप्ता' लिखने की कोई जरुरत नहीं, सामान्यतः शिक्षक सीधे नाम (रितेश) लेकर ही पुकारते हैं.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2015 at 3:20am

आदरणीया कांता जी , सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 24, 2015 at 7:26pm
सार्थक प्रयास। पर आदरणीय फीस , डोनेशन आदि व्यवस्था के हिस्से हैं , अच्छे हैं या गलत यह व्यवस्था का प्रश्न है, गुरु - दक्षिणा का भाव भिन्न है , वह गुरु एवं शिष्य के बीच का रिश्ता है , वह ऋषि - ऋण है , जिस से हम उऋण होने का प्रयास करते हैं, पर हो कितना पाते हैं , यह अलग बात है.
हाँ आपकी कथा में यह संकेत अवश्य है कि शिक्षा में आयी घोर व्यवसायिकता ने गुरु और शिष्य के महान संबंधों को भी मात्र एक बाजारी सम्बन्ध बना दिया है।
इसलिए आपके प्रयास पर बधाई, आदरणीय कांता जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service