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लघुकथा : वात्सल्य (गणेश जी बागी)

च्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में आँसू स्पष्ट दिख रहे थे ।

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : फेस वैल्यू

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 11:50pm

आदरणीय जवाहर लाल जी, सराहना और प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 11:49pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद उत्साहवर्धन कर गया, बहुत बहुत आभार.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 22, 2015 at 7:29pm

बहुत ही सुंदर लघुकथा. आज के आपा-धापी से भरे जीवन में ऐसा  स्वभाव बहुत देखने को मिलता है, अब इसे मस्तिष्क पर भौतिकता का सवार होना कहेंगे या संवेदनहीनता..? बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय बागी जी

Comment by विनोद खनगवाल on January 22, 2015 at 7:11pm
आदरणीय गणेश जी। बहुत बेहतरीन लघुकथा संवेदनाओं से परिपूर्ण। बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 22, 2015 at 12:22pm

आदरणीय बागी जी

बहुत ही सुन्दर कथा आपने गुम्फित की है  I  संवेदनहीनता के भी कई रूप है  और आपने जिस संवेदनहीनता का मुजाहरा पेश किया वह मानव् की हृदयहीनता ही नहीं अपितु उसका अज्ञान भी है  i इस उम्दा कथा के लिया आपको बहुत-बहुत बधाई  i सादर i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2015 at 11:45am

आज इन्सान इन्सान से ज्यादा भौतिक वस्तुओं के मोह में जकड़ता जा रहा है, इसे सिद्ध करने में सफल कहानी  के लिए हार्दिक बधाई श्री गणेशजी "बागी" जी 

Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 11:08am

वात्सल्य किससे अधिक है ,एक सीख है ,मैं भी कई बार अपने ढाई वर्ष के बेटे की शरारत पर झुंझला जाता हूँ पर जब बाड में मनन करता पाता हूँ तो स्वयं ही दोषी साबित होता हूँ \आत्म-विमर्श  को प्रेरित करती इस लघुकथा पर बधाई |

Comment by Archana Tripathi on January 22, 2015 at 11:02am
स्वयम् किगलती नहीं दिखी की नन्ही बच्ची गाडी पर अकेले छोड़ आये।उसपर इतनी संवेदना भी नहीं बची की बच्ची को सहला ही देते। प्रेम टॉफ़ी और बिस्किट जैसी भौतिक चीजे देने तक ही सीमित है।
अत्यंत सुन्दर रचना

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:53am

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी, सराहना और उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:45am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, लघुकथा पर आपका आना और सकरात्मक प्रतिक्रिया दोनी हर्षित कर गयी, प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार.

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