For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“अरे क्या हुआ ये भीड़ कैसी है, कोई मर गया है क्या ?”

“हाँ यार वो साहब का नौकर, अरे वही यार जो साहब के घर के सारे काम करता था, झाड़ू - पोछा, चूल्हा-चौका ,बर्तन माँजने से लेकर सब्जी-भाजी लाने तक....जिसे साहब गाँव से लेकर आये थे, कहते थे चपरासी रखवा दूंगा डिपार्टमेंट में !”

“ओह वो गूंगा, वो तो बड़ा ही भला था और ठीक-ठाक भी, कैसे मरा ?”

“दोस्त, सब कह रहें हैं आत्महत्या कर ली, पर यार तू बताना मत किसी को, मेमसाहब की चेन चोरी हो गयी थी, कल रात पुलिस भी आई थी, बहुत मारा उसे, पर वह गूंगा नहीं था, उसे अरे-माई, अरे-माई, चिल्लाते हुए मैंने सुना था !”

अच्छा ..कुछ मिला क्या उसके पास ?   

“हाँ, साहब का दिया हुआ एक कुरता पायजामा और एक गमछा और उसके माँ- बाप का दिया नाम, ‘कलुआ’ !”

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 846

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:28pm

 आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर , उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार , लगता है आदरणीय " बागी जी " की डांट रुपी दवा असर कर रही है ..हा .हा ...! सादर प्रणाम  ! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:50pm

गरीब और  असहाय लोगों पर बड़े लोगों के अत्याचार का यस सिलसिला  अनवरत जारी है | और समाज एवं सत्ता पर भी सक्षम ही काबिज है जो ऐसे बेहद मार्मिक खबरें पढ़कर चुप रहते है | सुंदर लघुकथा  के  लिए  हार्दिक बधाई श्री हरिप्रकाश दुबे जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 5:23pm

बहुत सुन्दरता से मार्मिक चित्रण. बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2015 at 12:35pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , सक्षम का नीरीह के ऊपर अत्याचार का बहुत  मार्मिक वर्नन किया है आपने । लघुकथा के लिये आपको बहुत बधाइयाँ ।

Comment by Archana Tripathi on January 19, 2015 at 10:55am
अति उत्तम कथा।गूंगा नाहोता तो आजीविका कैसे चला पाता?
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 19, 2015 at 10:48am

बेहतरीन चित्रण लघुकथा के माध्यम से समाज में ब्याप्त बुराई को उभारने की कोशिश अच्छी  है 

Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:24pm

बेहद कसे शब्दों में निरीह गरीब की व्यथा को अभिव्यक्त किया भाई जी ,बधाई इस सफल लघुकथा पर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 18, 2015 at 3:48pm

वाह खूब ,,,,,,,,,, बहुत खूब चित्रण किया है एक गरीब का जिसके पास अपने आप को बेगुनाह साबित करने का एक ही रास्ता नज़र आता है ,,,,,, क्योंकि उसे पता है इल्जाम मेरे ही सर आएगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 1:39pm

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी सफल लघुकथा .... बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 1:03pm

आ० हरि प्रकाश जी

लघु कथा की नब्ज पकड़ ली आपने i बहुत बहुत बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service