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काला पत्थर

डोभाल जी का मकान बन रहा था, बड़े ही धार्मिक व्यक्ति थे और प्रकृति प्रेमी भी,एक माली भी रख लिया था ,उसका कार्य एक सुन्दर बगीचे का निर्माण करना था ,वह भी धुन का पक्का था , उसने तरह-तरह के फूल ,घास ,पेड़ लगा दिए और कभी –कभी वह  सजावट के लिए रंग बिरंगे पत्थर भी उठा कर ले आता और बड़े अच्छे शिल्पी की तरह उन्हें पौधों के इर्द-गिर्द सजाता ,उस बगीचे में अब तरह तरह के  फूल खिलने लगे थे ,वही नीचे एक बड़ा काला सा पत्थर भी था जिस पर माली अपना खुरपा रगड़ता और पौधों के नीचे से खरपतवार निकालता , अब सब फूल उस पत्थर को हेय दृष्टी से देखते और कहते ,यार कैसा तुच्छ जीवन है तुम्हारा, रोज माली के खुरपे से रगड़े जाते हो,” काला -पत्थर” हमेशा चुप रहता, इधर मकान भी तैयार हो गया ,कुछ दिनों बाद वे सारे पुष्प, गृह-प्रवेश के दिन पूजा की थाली में सजा दिए गए थे ,इधर उसी माली ने उस काले पत्थर को तराश कर शिवलिंग का रूप दे दिया था और डोभाल जी का पूरा परिवार,पंडित जी के मंत्रोचार के साथ  उसकी पूजा कर रहा था और सभी  लोग एक-एक करके उन पुष्पों को उस शिवलिग पर अर्पित करते जा रहे थे I    

© हरि प्रकाश दुबे

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by Hari Prakash Dubey on November 27, 2014 at 6:19pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद विनोद जी !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 27, 2014 at 6:18pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी !

Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 2:21pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी, बहुत उम्दा लिखा है। बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2014 at 11:05am

आदरणीय हरी प्रकाश जी ..सन्देश प्रद इस सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:59am

 आपका हार्दिक आभार आदरणीय   लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:57am

आपका हार्दिक आभार,vijay nikore सर!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2014 at 11:40am

समय बड़ा बलवान है | जिस पत्थर पर माली खुरपा रगड़ता था, वही पत्थर शिवलिंग के रूप में पूजा जा रहा है और फूल चढ़ाए 

जा रहे है | सुंदर  लघु कथा के लिए  बधाई श्री  हरी प्रकाश डूबे जी 

Comment by vijay nikore on November 25, 2014 at 10:41am

लघु कथा में अच्छा संदेश दिया है। बधाई।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 24, 2014 at 8:09pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय laxman जी।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 24, 2014 at 8:07pm

आदरणीया अर्चना जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार, बहुत खूब कहा आपने ......कभी कूटी कभी वो रौंदी जाती है / उसी मांटी की मूरत पूजी जाती है 

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