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देखो उसे, दार्शनिक बनकर

फिर बैठेगा, नाक में ऊँगली डालेगा

कुछ निकलेगा, गोल –गोल गोलियायेगा

बिस्तर में पोछेंगा, पर कुछ सोचेगा

आँखे बंद करेगा, चिंतन करेगा

इस पर चिंतन, उस पर चिंतन

कर्म पर चिंतन, भाग्य पर चिंतन

शून्य पर चिंतन, अनंत पर चिंतन

चिंतन से निकले हल पर, चिंतन

चिंतन करते –करते, थककर सो जाएगा

इस दर्शन को, कौन समझ पाया है ?

कौन समझ पायेगा ?,पर मैं जानता हूँ,

जब वह चिंतन से जागेगा ,समय से तेज भागेगा,

दिशाविहीन –विमाहीन हो जाएगा  

ब्रह्म को जान कर भी ,बता नहीं पायेगा

पर वह चिंतन से जागेगा ,समय से तेज भागेगा !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 20, 2014 at 11:53pm

आ. हरि प्रकाश भाई , सुन्दर चिंतन के लिये बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:41pm

आपका हार्दिक आभार श्री योगराज प्रभाकर जी ,आपकी सलाह सर आँखों पर ,साभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:37pm

"आदरणीय डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब ,आपका उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार !"

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:34pm

आपका हार्दिक आभार श्री सोमेश कुमार जी

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2014 at 12:30pm

हरि प्रकाशजी

सुन्दर प्रस्तुति है i  सादर i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 12:13pm

बहुत बढ़िया प्रस्तुति है आ० हरिप्रकाश दुबे जी, बधाई स्वीकारें। अब क्वांटिटी की जगह क्वालिटी को तरजीह देनी शुरू करें कृपया।

Comment by somesh kumar on November 19, 2014 at 10:26am

चिंतन के इस स्वरूप पे पहुंचना उस कहावत को सत्य साबित करता है -जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि |

कृपया ध्यान दे...

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