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लघुकथा : गुब्बारा (गणेश जी बागी)

"वाह वाह !! क्या लिखते हैं साहब, एक बार किताब छपने तो दीजिये, देखिये कैसे लोग हाथो हाथ उठा लेते हैं I"

पाण्डुलिपि पलटते हुए प्रकाशक ने "कवि जी" से कहा । खैर, जीवन भर की कमाई और कुछ मित्रों से उधार लेकर किताब छप गयी। 
प्रकाशक ने पाँच सौ प्रतियां "कवि जी" के पास भिजवा दीं । 
झाड़ू लगाते समय पत्नी का भुनभुनाना अब रोज की बात हो गयी ।
.

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : दुकानदारी

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2014 at 10:33am

लघुकथा पसंद करने हेतु दिल से आभार प्रेषित है आदरणीय जितेंद्र जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2014 at 10:29am

आदरणीय शिज्जु भाई, उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2014 at 10:29am

आदरणीया वेदिका जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2014 at 10:29am

लघुकथा पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी।

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 10, 2014 at 9:15pm

हार्दिक अभिनन्दन बागी जी,

पन्नों की बातें पंक्तियों में समेट दीं। आपकी सराहना में दो पंक्तियाँ विशेष आपके लिए लिखीं हैं, कि 

             "यूँ तो हम सभी में, उस रब की ही छवि है,

                  जो दर्द बाँट ले, वही तो कवि है ।"   

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 5:41pm

आदरणीय बागी जी

ऐसे गुब्बारे रोज ही फुस्स  होते रहते है i पर जब तक फुस्स नहीं होते  वैसे ही फूले रहते हैं i सुख फूले रहने में है तो छपाओ  क्यूँ i काश हम् कुछ  तो अपना आत्म मूल्यांकन करें i फुस्स की नौबत न आने दे i  बेहतरीन लघु कथा i सम -सामयिक भी और सन्देश भी देती हुयी i सादर i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 10, 2014 at 2:48pm

आदरणीय बागी सर ....इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 9, 2014 at 11:11pm

बहुत ही बेहतरीन लघुकथा. आइना दिखाती हुई चंद पंक्तियाँ, बहुत -बहुत बधाई आदरणीय बागी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2014 at 7:48pm

आदरणीय बागी जी लघुकथा के माध्यम से आपने एक दबी हुई सच्चाई बयान की है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by वेदिका on October 9, 2014 at 1:13pm
आह! एकदम कवि के ह्रदय को चीर के उस लहू से लिखी गयी लघुकथा पर अथाह बधाई प्रेषित है
सादर !!

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