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लघुकथा : दुकानदारी (गणेश जी बागी)

                 कपूर साहब कंस्ट्रक्शन कम्पनी के मालिक हैं । उनके संरक्षण में चलने वाली साहित्यिक संस्था सरकारी विभाग के सर्वोच्च अधिकारी वर्मा जी को उनकी लिखी किताब के लिए आज सम्मानित कर रही है । कपूर साहब ने शॉल, स्मृति-चिन्ह और स्वर्ण-पत्र देकर वर्माजी को सम्मानित किया ।

                     कार्यक्रम समापन के पश्चात कपूर साहब ने वर्मा जी को बधाई देते हुए धीरे से कहा, "सर, जरा उस 200 करोड़ वाले टेंडर को देख लीजियेगा"

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : बंद गली

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2014 at 1:16pm

आदरणीय
साहित्य में कारोबार का बेहतरीन परिदृश्य . प्रेमचंद की कहानी 'संपादक मोटेराम शास्त्री' की याद ताजा हो गयी . बहुत बेहतरीन .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 28, 2014 at 11:55am

बहुत सुंदर लघुकथा साझा की आपने आदरणीय बागी जी, आज के समय में इंसान का स्वार्थ इस चरम पर है की कुछ भी कर बैठता है.कहीं कोई सीमा नही. बहुत-२ बधाई आपको आदरणीय बागी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 28, 2014 at 11:08am

पता नहीं किस- किस की आड़ में ये सो काल्ड बिजनेस चलती रहती हैं साहित्य को भी नहीं छोड़ा ...बिना मतलब यहाँ पेड़ से पत्ता नहीं हिलता .इस बात को चरितार्थ करती ...,इस सफल लघु कथा के लिए बहुत- बहुत बधाई आ० गणेश बागी जी  |

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 28, 2014 at 10:55am

स्वार्थ के सब नाते, बिल्कुल सही आदरणीय आपको बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 28, 2014 at 10:28am

साहित्य और कारोबार के छुपे समन्वय को उजागर करती लघु कथा हेतु बधाई आदरणी गणेश जी ' बागी ' जी।

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