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मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

221   2121   1221    212  

 

जल जल के सारी रात यूं मैंने लिखी ग़ज़ल

दर दर की ख़ाक छान ली तब है मिली ग़ज़ल

 

 मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल

 

मदमस्त शाम साकी सुराही भी जाम भी

हल्का सा जब सुरूर चढ़ा तब बनी ग़ज़ल

 

शबनम कभी बनी तो है शोला कभी बनी

खारों सी तेज चुभती कभी गुल कली ग़ज़ल

 

चंदा की चांदनी सी भी सूरज कि किरणों सी

हर रोज पैकरों में नए है ढली ग़ज़ल

 

चलती ही जा रही है जमाने से आज तक

मिर्जा तकी के साथ कभी थी चली ग़ज़ल 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 784

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:55pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..बड़े दिनों बाद काफिआ की गलती से मुक्ति मिली ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीय हरिवल्लभ जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीय जीतेएन्द्र जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:53pm

आदरणीय करून सर ..आप अग्रजो का स्नेह और आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:51pm

आदरणीय गोपाल सर ..बस आपका आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:50pm

आदरणीय श्याम नारयन जी .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मुझे हौसला देती है ..हार्दिक धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:49pm

आदरणीय नरेन्द्र जी आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2014 at 8:38pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बढ़िया ग़ज़ल कही है , सभी अश आर बढ़िया हुए हैं , आपको दिली बधाइयाँ |

Comment by harivallabh sharma on September 21, 2014 at 1:21pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है आदरणीय..

मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल...सुन्दर शेर बधाई आपको.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 21, 2014 at 1:17pm

बेहद खुबसूरत. हर शे'र तारीफ़ के काबिल, दिली बधाई आपको आदरणीय डा. आशुतोष जी

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