For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोझ

सारी उमर मैं बोझ उठाता रहा जिनका
उन आल-औलादों की वफ़ा गौर कीजिये
मरने के बाद मेरा बोझ ले के यूँ चले
मानो निजात पा गए हों सारे बोझ से

मैंने समझ के फूल जिनके बोझ को सहा
छाती से लगाया जिन्हें अपना ही जानकर
वे ही बारात ले के बड़ी धूम धाम से
बाजे के साथ मेरा बोझ फेंकने चले

अपने लिए ही बोझ था मै खुद हयात में
अल्लाह ये तेरा भला कैसा मजाक है
ज्योही जरा हल्का हुआ मै मरकर बेखबर
खातिर मै दूसरों के एक बोझ बन गया

लगती थी बोझ जिन्दगी उनके बिना मुझे
यह चाह थी मरकर कभी उनसे गले मिलूँ
मरकर भी बेवफा को जब मै न पा सका
लिल्लाह मेरी मौत मेरा बोझ बन गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 614

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:25pm

करुण जी

रचना पर समय देने के लिए मै ह्रदय से आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:25pm

मित्र

आपका स्नेह ह्रदय से स्वीकार I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:24pm

आशुतोष जी

आपका शत-शत आभार i

Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:13pm

आदरणीय डॉ. श्रीवास्तव जी, 

वृद्धावस्था की बोझिल विसंगति पर हृदयवेधी भावनाएँ इस रचना में आई हैं --

"मरने के बाद मेरा बोझ ले के यूँ चले
मानो निजात पा गए हों सारे बोझ से

मैंने समझ के फूल जिनके बोझ को सहा 
छाती से लगाया जिन्हें अपना ही जानकर 
वे ही बारात ले के बड़ी धूम धाम से 
बाजे के साथ मेरा बोझ फेंकने चले"

...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:51pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , लाजवाब रचना की है आपने , बस वाह वह | जीवन की तल्ख सच्चाई को नंगा कर दिया है | तहे दिल से बधाई स्वीकार करें | और निम्न पंक्तियों के लिए अलग से बधाई --

मरकर भी बेवफा को जब मै न पा सका
लिल्लाह मेरी मौत मेरा बोझ बन गयी -  वाह |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 31, 2014 at 9:50pm

आदरणीय गोपाल सर ..इस रचना के माध्यम से जिन्दगी की कटु यथार्थ से आपने रूबरू कराया है ..इस बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 31, 2014 at 1:13pm

जीतू जी

आपका हार्दिक आभार i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 12:06pm

एक कोरा और कटु सत्य कहती हुई रचना. एक अंतिम सत्य. आदरणीय डा. गोपाल जी इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2014 at 5:02pm

नरेन्द्र जी

आपका आभारी हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2014 at 5:02pm

विजय सर

आपका  प्रोत्साहन मेरी उर्जा बने i सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service