For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंधे अंधा ठेलिया (लघुकथा) - रवि प्रभाकर

“अबे ये बकरी किसकी बंधी हुई है यहाँ ?”
“ज़मींदार साब, ये बदरू की बकरी है, खेत में घुस कर नुस्कान कर रई थी तो पकड़ लाये।“
“अच्छा किया, इन सालों को औकात भूल गई है अपनी।“
“सच कहा सरकार, ऊपर से सरकार ने इन लोगों का और भी दिमाग खराब कर रखा है।“
“तो चढायो आज हांडी पर इस ससुरी बकरिया को।“
“मगर सरकार बदरू तो जात का......”
“अबे मूरख आदमी, जात-पात तो इंसानों की होती है जानवरों की नहीं।”

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 757

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prabhakar on August 12, 2014 at 5:42pm

सभी महानुभावों का रचना को अपना समय देने और पसंद करने के लिए धन्‍यवाद

Comment by Shubhranshu Pandey on August 7, 2014 at 9:12am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी,

आपकी रचना पर एक पुरानी फ़िल्म का सीन याद आ गया जिसमें दादी जी खुले पैसे पर तो गंगा जल छिड़कती हैं, ये कह कर ना जाने किसके -किसके हाथ में गया होगा. लेकिन नोटो को सीधे रख लेती हैं, ये कहते हुये कि ये सबके हाथ में थोडे़ ही जाता है.....

बकरी तो बकरी है कब तक खैर मनायेगी.....

सुन्दर कथा. 

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 7, 2014 at 9:00am

कहीं कुछ फायदा या स्वार्थ की बात आ आजाये तो सारे नियम तोड़ कर रख दिए जाते है..बहुत प्रभावशील लघुकथा, बधाई आपको आदरणीय रवि जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2014 at 10:12pm

ज़िल्ले इलाही का इक़बाल बुलंद रहे आ० सौरभ भाई जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 9:33pm

उनके हाथों का छुआ पानी पीने से ऐतराज़ करने वाले , उनकी बकरी पचाने के लिये तैयार हैं । वाह रे इंसान , अपने स्वार्थ के  लिये बदलते च्रित्र को आपने बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं । आदरणीय इस लघुकथा के लिये आपको बधाइयाँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2014 at 9:21pm

समझ गया हूँ, आदरणीय..  पूँछ गँवा कर आदमी ने वाकई बहुत कुछ गँवाया है. इसीसे सभी की पूँछ ढूँढता फिरता है.. :-))

तभी मैंने कहा कि जात-पात मर्दों के लिए होती है..  हा हा हा हा ..

सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2014 at 8:56pm

आ० सौरभ भाई जी, मैंने जो शेअर कोट किया है उसे भी तो देखें ज़रा. पँजाबी में है मगर आप अर्थ समझ जायेंगे। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2014 at 8:52pm

हाँ, जात-पात मर्दों केलिए होती है..  !!  ऐसा लिखा हुआ इतिहास की पोथियों में कम, गाँव के डँड़ेरों और खेतों की पगड़ंडियों में भरा पड़ा है. 

बहुत खूब रवि भाई ! इस वार्तालाप शैली में जिस गहनता से कथ्य और तथ्य उभर कर आये हैं वह पूरी वर्णिक व्यवस्था के थोथेपन पर प्रश्न खड़े करते हैं.

दिल से बधाई लीजिये. शुभेच्छाएँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 6, 2014 at 6:24pm

बेहतरीन i खासकर संवाद जिस अंदाज में सजाये गए i प्रभाकर जी - बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2014 at 6:02pm

बहुत प्रभावशाली सटीक लघु कथा ...हार्दिक बधाई आपको आ० रवि प्रभाकर जी| 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया लक्ष्मण भाई।"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जिनकी टिप्पणी से सीखने को मिला…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service