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एक बड़ा हादसा (लघुकथा)

फैक्ट्री में हुए एक भयानक हादसे में उसे अपनी दोनों टाँगे गंवानी पड़ गई, जबकि उसके तीन साथियों को जान से हाथ धोना पड़ा था.
"तुम्हें ठीक होनें में तो अभी बहुत समय लगेगा, जबकि एक महीने के बाद ही तुम्हारी रिटायरमेंट है। इसलिए मैनेजमेंट ने फैसला किया है कि तुम्हें एक महीना पहले ही रिटायर कर दिया जाए।”  उसका हाल चाल पूछने आए सहकर्मियों में से एक ने उसे सूचित किया
“चलो कोई बात नहीं यार, भगवान का शुकर मनायो कि जान बच गई।” दूसरे ने दिलासा देते हुए कहा. 
"हमारे उन तीन साथियों का क्या हुआ जिनकी मौत हो गई थी ?" उसने उदास स्वर में पूछा
"उन सब के बेटों को नौकरी दे दी गई है." उत्तर मिला 
कोने में बैठे अपने बेरोजगार बेटे और उसके तीन बच्चों को देख आज उसे अपने ज़िंदा बच जाने का बेहद अफ़सोस हो रहा था।
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(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 18, 2014 at 3:12pm

आजादी के 68 वर्ष बीतने पर भी बेरोजगारी का ये भयावाह स्वरुप कितना शर्मनाक है 

अंतिम पंक्ति जैसे हृदय पर किसी दंश सी चुभती है...."कोने में बैठे अपने बेरोजगार बेटे और उसके तीन बच्चों को देख आज उसे अपने ज़िंदा बच जाने का बेहद अफ़सोस हो रहा था।"    न तो बेटे को नौकरी मिल सकी और अब उस अपाहिज के रूप में एक और बोझ बेरोजगार बेटे के कन्धों पर 

समाज की सच्चाइयों को आईने की तरह प्रस्तुत करती आपकी लघुकथाएं प्रभावोत्पादक तरह से मन पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम होती हैं 

हार्दिक बधाई इस लघुकथा पर आ० रवि प्रभाकर जी 

Comment by Ravi Prabhakar on August 18, 2014 at 2:27pm

श्रद्धेय सौरव भाई जी,
लघुकथा के अनुमोदन के लिए धन्यवाद। आपकी बधाई किसी पुरस्कार से कम नहीं होती। स्नेह बनाए रखिएगा।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 4:45pm

//कोने में बैठे अपने बेरोजगार बेटे और उसके तीन बच्चों को देख आज उसे अपने ज़िंदा बच जाने का बेहद अफ़सोस हो रहा था। //

एक उत्तरदायी पालक ही अपने जीवन को ’जीने की’ ऐसी कसौटियों पर किसी इकाई की तरह रख सकता है. 

इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई, अनुज रविभाई

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:32pm

आदरणीय आशीष भाई,
लघुकथा के मर्म को समझने व सराहने हेतु धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:31pm

आदरणीय मीना पाठक जी, राम शिरोमणी पाठक जी व अन्नपूर्णा जी !
लघुकथा पर आपकी उपस्थिती हेतु सादर धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:30pm

प्रिय मित्र जितेन्द्र जी,
मैं तो आपकी लघुकथाओं का प्रशंसक हूं। आपकी उपस्थिती मानो नए रक्त का संचार करती है। धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:27pm

आदरणीय शुभ्रांशु भाई,
रचना पर आपकी उपस्थिती उर्जावान कर देती है। आप जैसे संवेदनशील रचनाकार की सार्थक प्रतिक्रिया बहुत बल प्रदान करती है। धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:25pm

आदरणीय विजय शंकर जी,
सादर। जब आप सरीखे महानुभाव रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं तो मरूथल में मीठी झील के शीतल नीर की प्राप्ति सा अनुभव होता है। स्नेह बनाए रखें।

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:23pm

आदरणीय राजेश दी,
नमस्कार। लघुकथा पर आपकी उपस्थिती व टिप्पणी हेतु धन्यवाद।
भविष्य में भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे....

Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2014 at 2:20pm

आदरणीय गोपाल जी,
लघुकथा पर आपकी उपस्थिती से मन अत्यंत हर्षित है। स्नेह बनाए रखें।

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