सामाजिक सुरक्षा को तरसे
एकल परिवारों में जो पले,
आर्थिक सुरक्षा और -
स्नेह भाव मिले
संयुक्त परिवार की ही
छाया तले |
घर परिवार में
हर सदस्य का सीर
बुजुर्ग भी होते भागीदार,
बच्चो की परवरिश हो,
संस्कार या व्यवहार |
अभिभावक व माता पिता
जताकर समय का अभाव
नहीं बने
अपराध बोध के शिकार,
संयुक्त परिवार तभी
रहे और चले |
प्रतिस्पर्था से भरी
सुरसा सामान दौड़ती
भागमभाग जिन्दगी,
अवसाद भरी और
तनाव के भार से लदी
समयाभाव जताती
बेलगाम जिन्दगी |
जड़ों की ओर लोटने को
मजबूर आग्रही नयी पीढ़ी,
पाने को पारिवारिक स्नहे
और सुरक्षा की सौगात,
तभी संभव
जब हो ह्रदय विशाल,
बड़े भी समझे
और देवे मान
छोटों की भावनाओ
का हो भान |
छोड़े अहम का भाव
रिश्ते बने बेहतर
तभी सौहार्द बढे
जीवन तत्व है यही
जीवन का सार,
तभी बनेगा स्वर्ग सा
यह सुन्दर संसार |
Comment
हार्दिक आभार आपका आद. सविता मिश्रा जी
अति सुन्दर _/\_
रचना को संदेशात्मक कह कर मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी
रचना में निहित कथ्य का अनुमोदन करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्री संतलाल जी
छोड़े अहम का भाव
रिश्ते बने बेहतर
तभी सौहार्द बढे
जीवन तत्व है यही
जीवन का सार,
तभी बनेगा स्वर्ग सा
यह सुन्दर संसार | -- बहुत सुन्दर , आवश्यक संदेश ॥ आपको बधाइयाँ ॥
रचना की सार्थकता जताने के लिए आपका हार्दिक आभार आद श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री जितेन्द्र गीत जी
आदरणीय लड़ीवाला जी,
बड़ी सहज, स्वस्थ, हृदयगत उद्भावना की कविता, अति सुन्दर; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
लडीवाला जी
संयुक्त परिवार के समर्थन में लिखी इस कविता का संदेश लोगो तक पहुंचे यही कामना है i
एक सुंदर सन्देश देती रचना, बहुत-२ बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी
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