For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिल्ली सी कविताएँ --- अरुण श्री !

मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ !

 

क्योकि -

युद्ध जीत कर लौटा राजा भूल जाता है -

कि अनाथ और विधवाएँ भी हैं उसके युद्ध का परिणाम !

लोहा गलाने वाली आग की जरुरत चूल्हों में है अब !

एक समय तलवार से महत्वपूर्ण हो जातीं है दरातियाँ !

 

क्योंकि -

नई माँ रसोई खुली छोड़ असमय सो जाती है अक्सर !

कहीं आदत न बन जाए दुधमुहें की भूख भूल जाना !

कच्ची नींद टूट सकती है बर्तनों की आवाज से भी ,

दाईत्वबोध पैदा कर सकता है भूख से रोता हुआ बच्चा !

 

क्योंकि -

आवारा होना यथार्थ तक जाने का एक मार्ग भी है !

‘गर्म हवाएं कितनी गर्म हैं’ ये बंद कमरे नहीं बताते !

प्राचीरों के पार नहीं पहुँचती सड़कों की बदहवास चीखें !

बंद दरवाजे में प्रेम नहीं पलता हमेशा ,

खपरैल से ताकते दिखता है आंगन का पत्थरपन भी !

 

क्योकि -

मैं कई बार शब्दों को चबाकर लहूलुहान कर देता हूँ !

खून टपकती कविताएँ कपड़े उतार ताल ठोकतीं हैं !

स्थापित देव मुझे ख़ारिज करने के नियोजित क्रम में -

अपना सफ़ेद पहनावा सँभालते हैं पहले !

सतर्क होने की स्थान पर सहम जातीं हैं सभ्यताएँ !

पत्ते झड़ने का अर्थ समझा जाता है पेड़ का ठूंठ होना !

 

मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ -

विजय-यात्रा पर निकलते राजा का रास्ता काट दें !

जुठार आएं खुली रसोई में रखा दूध , बर्तन गिरा दे !

अगोर कर न बैठें अपने मालिक की भी लाश को !

मेरे सामने से गुजरें तो मुँह में अपना बच्चा दबाए हुए !

 .

 .

 .

अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1113

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 29, 2014 at 11:16am

अरुण जी

आपकी अनुभूति गहरी है  i आप बहूत डूब  कर र्लिखते हैं I प्रतीक और बिम्बों का तो कहना हे  क्या  ?  आप निश्चित  रूप से herald कवि हैं  i  जब मैं यह पंक्तिया पढता हूँ इओ कभी दिनकर याद आते है और कभी निराला ------?

 

मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ -

विजय-यात्रा पर निकलते राजा का रास्ता काट दें !

जुठार आएं खुली रसोई में रखा दूध , बर्तन गिरा दे !

अगोर कर न बैठें अपने मालिक की भी लाश को !

मेरे सामने से गुजरें तो मुँह में अपना बच्चा दबाए हुए !

 .

 .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 10:57am

चिंतन परक एक अलग अंदाज में उपजे सोच पर रची रचना भाव के लिए बधाई श्री अरुण श्री जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 5:09pm

आदरणीय अरुण जी ..ताजगी से परिपूर्ण रचना /..इस रचना चिंतन के लिए प्रेरित करती है ,,,यथार्थ बताती हैं और तेजी से बदलते परिवेश की तरफ इशारा भी करती है इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 2:45pm
आदरणीय अरुण श्री जी , अच्छा लिखा है," तलवार से महत्वपूर्ण हो जातीं है दरातियाँ ,"
अच्छी रचना है , बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
17 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service