For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अजन्मी उम्मीदें --- अरुण श्री

समय के पाँव भारी हैं इन दिनों !

 

संसद चाहती है -

कि अजन्मी उम्मीदों पर लगा दी जाय बंटवारे की कानूनी मुहर !

स्त्री-पुरुष अनुपात, मनुस्मृति और संविधान का विश्लेषण करते -

जीभ और जूते सा हो गया है समर्थन और विरोध के बीच का अंतर !

बढती जनसँख्या जहाँ वोट है , पेट नहीं !

पेट ,वोट ,लिंग, जाति का अंतिम हल आरक्षण ही निकलेगा अंततः !

 

हासिए पर पड़ा लोकतंत्र अपनी ऊब के लिए क्रांति खोजता है

अस्वीकार करता है -

कि मदारी की जादुई भाषा से अलग भी हो सकता है तमाशे का अंत !

लेकिन शाम ढले तक भी उसकी आँखों में कोई सूर्य नहीं उत्सव का !

ताली बजाने को खुली मुट्ठी का खालीपन बदतर है -

क्षितिज के सूनेपन से भी !

शांतिवाद हो जाने को विवश हुई क्रांति -

उसकी कर्म-इन्द्रियों पर उग आए कोढ़ से अधिक कुछ भी नहीं !

 

पहाड़ी पर का दार्शनिक पूर्वजों के अभिलेखों से धूल झाड़ता है रोज !

जानता है कि घाटी में दफन हो जाती हैं सभ्यताएँ और उसके देवता !

भविष्य के हर प्रश्न पर अपनी कोट में खोंस लेता है सफ़ेद गुलाब !

उपसंहारीय कथन में -

कौवों के चिल्लाने का सम्बन्ध स्थापित करता है उनकी भूख से !

अपने छप्पर से एक लकड़ी निकाल चूल्हे में जला देता है !

 

कवि प्रेयसी की कब्र पर अपना नाम लिखना नहीं छोडता !

राजा और जीवन के विकल्प की बात पर -

“हमें का हानी” की मुद्रा में इशारे करता है नई खुदी कब्र की ओर !

उसके शब्द शिव के शोक से होड़ लगाते रचते है नया देहशास्त्र !

मृत्यु में अधिक है उसकी आस्था आत्मा और पुनर्जन्म के सापेक्ष !

 

समय के पाँव भारी हैं इन दिनों !

संसद में होती है लिंग और जाति पर असंसदीय चर्चा !

लोकतंत्र थाली पीटता है समय और निराशा से ठीक पहले !

दार्शनिक भात पकाता है कौवों के लिए कि कोई नहीं आने वाला !

सड़कों से विरक्त कवि -

आकाश देखता शोक मनाता है कि अमर तो प्रेम भी न हुआ !
.
.
.
.अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on June 12, 2014 at 10:04am
कविता को सराहने के लिए आप सभी को सादर धन्यवाद !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 5:30pm

कविता का कैनवास बड़ा है. इस कैनवास पर शब्द रंगने के लिए धन्यवाद.

यह सही है, देश करवट लेता दिख रहा है. आगे की उम्मीदों को सच्चाई मिले जो रोमांचकारी और उत्फुल्लताप्रदायी हो. वर्ना इसी कविता ने अबतक की उम्मीदों के हश्र का जो कोलाज साझा किया है वह विद्रुपकारी ही है.
कविता की उबाल आश्वस्त करती है. परन्तु एक बात और है, उबाल के प्रकारों में एक प्रकार दूध का ’फफाना’ भी है, जिसे तनिक पनिया दिया जाये ठण्ढी मार के तो एकबार में फुस्स हो जाता है.
भस्मीभूत उम्मीदों की राख शिवत्वधारी भभूत हो. और, उम्मीदें फिनिक्स का जीवन जीये...
आमीन !

कचोटती उबालों को ऐसे ही शब्द देते रहें. हमें भी खासी उम्मीदें हैं.  :-)))
एक बार फिर से मन खुश कर दिया आपने भाई.
जय-जय

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 5:47pm
क्रांति ही क्रांति , उबन और उबास में उसाँस लेती ये रचना आजकी सत्ता-संस्था और उसके अव्ययीभाव और प्रत्यय जो अर्थ की दृष्टि से पूर्णतः भिन्न है पर किसी भी प्रबुद्ध को चिंतन करने के लिए बाध्य करती है |क्या ही उत्कटता ऊभर कर आई है ! अनन्य शुभकामना इस जाग्रत रचना केलिए श्री अरुण श्रीजी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:17pm

हिलाने वाली , झकझोरने वाली ..क्रांतिकारी रचना ..वर्तमान परिदृश्य का बखूबी चित्रण करती रचना ..बिलकुल हट कर ताजगी से भरी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on June 7, 2014 at 11:24am

वर्तमान का आकलन और भविष्योन्मुख विचारदृष्टि का सार है अग्निधर्मा शब्दों में। अपने आग्नेय प्रभाव के साथ उत्कृष्ट और आश्वस्त करती कविता के लिए अरुण श्री  जी को  बधाई -जगदीश पंकज 

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2014 at 9:56am

आपको पढ़ना मेरे लिए उपलब्धि है और यह गर्व की बात कि मैं आपको जानता हूँ. आपकी लेखनी के लिए मैं इससे अधिक क्या कह सकता हूँ? आपके लिखे पर इससे अधिक कुछ कहना मेरे लिए अपने ही सामर्थ्य को चुनौती देने जैसा ही है.

आपकी इस बेबाक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2014 at 7:41pm

बहुत कुछ कहती है ...आपकी कविता...

कुछ दिन और इंतजार कर ले 

मंदिर गुरूद्वारे में संहार कर लें,

अब बोधिवृक्ष नहीं, दरिंदगी का दीदार कर लें!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 11:57am

प्रिय अरुण जी

आपको पढ़ना अच्छा लगता है  i आपके पास जादुई कलम है  i आपके ह्रदय में कितनी ज्वाला है मै नहीं जानता  मगर आप की लेखनी आग उगलती है i  आप सही मायने में नैचुरल कवि है - एक क्रांतिकारी कवि - ठीक भी है -

                 जब तक मन में आग तभी तक ओठ कलम के गीले है i

शुब कामना सहित i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2014 at 12:03am

सच! आपकी रचना बहुत गहरा प्रभाव छोडती है,आदरणीय अरुण श्री जी

Comment by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:12pm

इस कविता की शीर्षक ही बहुत कुछ कह दिया कि वर्तमान के गर्भ में क्या है...और भविष्य में क्या होने वाला है....अनेकों साधुवाद अरून श्री जी.....सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"सादर अभिवादन "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"स्वागतम"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत शुक्रिय: जनाब अमीरुद्दीन भाई आपकी महब्बतों का किन अल्फ़ाज़ में शुक्रिय:  अदा…"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत धन्यवाद भाई अशोक रक्ताले जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"//मुहतरम समर कबीर साहिब के यौम-ए-पैदाइश के अवसर पर परिमार्जन करके रचना को उस्ताद-ए-मुहतरम को नज़्र…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा…"
Sep 9

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service