२१२२ ११२२ २१२
तेरी बातों से बड़ा हैरान हूँ
जिन्दगी मेरी बड़ा परेशान हूँ
क्या खता है, है सही क्या, क्या गलत
बेखबर इन से अभी नादान हूँ
मेरी खातिर है नहीं इक पल उन्हें
जो कहा करते थे उनकी जान हूँ
इश्क करना भी हुनर इक हो गया
इस हुनर से तो अभी अनजान हूँ
सांस चलती है तो जिंदा कहते सब
पर खबर मुझको कि मैं बेजान हूँ
है न चाहत का सबब मुझको पता
धड़कने कहती हैं बस कुरवान हूँ
रोक लेती वो ये कह के राह में
उसके दिल का मैं ही इक अरमान हूँ
तुम खिलौना ही समझते हो मुझे
या समझते हो कोई पाषान हूँ ?
सोहबत का है असर तुम पर पड़ा
और देखो मैं वही नादान हूँ
प्यास बुझते ही मुझे तुम फेंक दो
इस सदी में मैं भी इक सामान हूँ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर ...आपकी इस नेक सलाह पर मैं अवश्य ध्यान दूंगा ,,और कोशिस करूंगा की उर्दू के शब्दों के बिषय में किसी जानकार से मशविरा लेने के बाद ही रचना प्रकाशित करू....इस महीने कही ग़जलें लिखीं हैं पर आप की , वीनस जी की , शिज्जू जी की बातों को ध्यान में रखते हुए कोशिश तो करता हूँ की गलती न हो लेकिन कहीं न कहीं चूक हो ही जाती है ,,रचना पर अब और अधिक समय देने के बाद ही प्रकाशित करूंगा ..आप सभी का स्नेह यूं ही मिलता रहे ..इस अभिलाषा के साथ ..सादर प्रणाम
आदरणीय आशुतोषभाई, आप अगर अपनी इस ’बहुत अच्छी हो सकती’ ग़ज़ल को गंभीरता से लें, तो इसमें बहुत संभावनाएँ हैं.
वीनस भाई ने इशारा किया है.
आप अपनी ग़ज़लों में उर्दू लिहाज के शब्दों का प्रयोग करते हैं. उस हिसाब से कई बिम्ब और सध सकते हैं. ’सोहबत’ जैसे शब्दों के वज़न को देख लिया कीजिये.
सांस चलती है तो जिंदा कहते सब
पर खबर मुझको कि मैं बेजान हूँ .. . बहुत अच्छे खयाल हैं. !
शुभ-शुभ
आदरणीय वीनस सर ....मुझे तो सतत ही आपसे कुछ नया सीखने को मिला है ..आप जिस बिधिवत तरीके से गलतियों की और ध्यान दिलाते हैं और मशविरा देते हैं उससे हमेशा ही एक नयी दिशा मिलती है ..
तेरी बातों से बड़ा हैरान हूँ
जिन्दगी मेरी बड़ा परेशान हूँ...यहाँ तक्तीअ करते वक़्त मुझे परेशानके प्रयोग पर संदेह हुआ और शायद मैं इसी जगह गलत हूँ यदि मतला में इसके अलावा भी कोई गलती है तो मैं वहां तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ द..कृपया इस संदेह को दरकिनार करते हुए आप अपना बहुमूल्य समय निकालकर इस रचना की खामियों पर अपना बिस्तृत नजरिया प्रदान करने का करें ..मैं आप से सीखता हूँ ..सीखने वाला क्षमा करने की स्थिति में नहीं होता ..वो तो चाहता है उसकी अच्छे लेखन पर तारीफ़ भले न मिले लेकिन गलतियों पर बड़ी सख्त खिचाई की जाए ..इस मामले में आप जिंतना ज्यादा सख्ती से मुझसे पेश आयेंगे मुझे उतनी खुशी होगी ..सादर
Dr Ashutosh Mishra जी आप इस मंच पर लम्बे समय से सक्रिय हैं और लगातार लिख रहे हैं मगर लिखते रखने के लिए लिखना कितना सही है !!!
ये बात भी सही है कि इसी मंच पर आपने लय को साधा है मगर लय को सधे हुए बहुत समय बीत चुका है, अब तक्तीअ की और बढिए
तक्तीअ करते तो आपको पता चल जाता कि आपकी ग़ज़ल का मतला ही बहर से ख़ारिज है ...
अधिक कुछ कहा हो तो क्षमा करें
सादर
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..मेरी हर रचना को आपका स्नेह मिलता है ..आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियानो भविष्य में भी यू ही मिलती रहे ऐसी कामना के साथ सादर
आदरणीय गोपाल सर ..सादर प्रणाम ..आपके उर्जा से लवरेज करने वाले इन शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
आदरणीय डॉ विजय जी ..आप की उत्साह बढाती इस प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर ..
बहुत बेहतरीन गजल कही है, हरेक शे'र हुनर हुआ. दिली बधाई आपको आदरणीय डा.आशुतोष जी
प्यास बुझते ही मुझे तुम फेंक दो
इस सदी में मैं भी इक सामान हूँ............बहुत खूब.
आशुतोष जी
बहुत ही उम्दा गजल कही आपने i आखिरी शेर को सलाम करता हूँ -
प्यास बुझते ही मुझे तुम फेंक दो
इस सदी में मैं भी इक सामान हूँ
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