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भूख (लघुकथा)

"अरे बेटा , कैसे खा लिया तुमने उस ठेले से समोसा और पानी पूरी ? तुम तो जानते नहीं कि कितने गंदे हाथ होते हैं उनके और कैसा पानी और तेल इस्तेमाल करते हैं वो लोग"! मम्मी परेशान थीं और पापा चिंतित |
बड़े भाई ने भी टोक दिया "तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, तुम तो मेडिकल के छात्र हो" |
"लेकिन मम्मी, मुझे भूख बहुत लगी थी"|
अब सब खामोश थे |

.
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 7:24am

आदरणीय विनय कुमार सिंह जी,

स्वास्थ्यपरक चिंता पर अच्छी लघु कथा, संदेशपरक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by विनय कुमार on July 20, 2014 at 12:34am

आभार डॉ गोपाल एवम जितेंद्रजी..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 19, 2014 at 8:51pm

आदरणीय डा.गोपाल जी ने अपनी कहावत में सब कुछ कह दिया. बहुत ही बढ़िया लघुकथा आदरणीय विनय जी, आपको हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 19, 2014 at 4:42pm

विनय जी

बहुत सुन्दर  i एक पुरानी कहावत है - नींद न जाने टूटी खाट  i भूख न जाने सूखा भात ii

कृपया ध्यान दे...

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