For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" मेरे पास समय बहुत कम है , डाक्टर ने बता दिया है कि कैंसर अपने आखिरी स्टेज में है , प्लीज बेटे को बुला लो अब" | पापा की दर्द भरी आवाज सुनकर वो अपने आप को रोक नहीं सकी , आँसू बेशाख्ता आँखों से बह निकले | माँ तो जैसे जड़ हो गयी थी , सिर्फ सूनी सूनी आँखों से कभी पापा को , तो कभी उसे देखती रहती |

कैसे बताये उनको , कल ही तो उसने फोन किया था भाई को | पूरी बात सुनने से पहले ही बोल पड़ा " मैं बार बार नहीं आ सकता वहां , अभी १५ दिन पहले ही तो आया हूँ | इतनी छुट्टी नहीं मिल सकती मुझे , और हाँ पैसों की जरुरत हो तो मुझे बता देना , भेज दूंगा"|

रात बीती , सुबह हुई | पापा नहीं रहे | हस्पताल के सभी बिल चुकाने के बाद , पापा का पार्थिव शरीर एम्बुलेंस से घर ले आई | और भाई को उसने मैसेज कर दिया " तुम्हारे भेजे हुए पैसों से हस्पताल के बिल चुकाने के बाद करीब छः हज़ार बच गए थे , तुम्हारे अकॉउंट में डलवा दूंगी | और हाँ , अंतिम संस्कार तो मैं करवा दूंगी , अगर छुट्टी मिल जाये तो ब्राह्मणों को भोजन कराने तेरहवीं में आ जाना"| 

.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 21, 2014 at 9:39pm

आभार सौरभजी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:15am

आपकी लघुकथाओं को लगातार पढ़ रहा हूँ. आप जिस तरह से पारिवारिक-सामाजिक विन्दुओं को महसूस कर उनके पास ताना-बाना बुनते हैं वह आपकी संवेदनशीलता तथा सतत अभ्यासरत होने द्योतक है. प्रस्तुत लघुकथा पर आदरणीया राजेश कुमारजी के विचार तथ्यात्मक हैं.

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 8:48pm

आभार सुभ्रांशुजी , आपने अपने विचार रखे | कभी कभी चीजे स्पस्ट नहीं हो पातीं हैं , शायद मैं स्पस्ट नहीं कर पाया |

Comment by Shubhranshu Pandey on July 16, 2014 at 6:36pm

आदरणीय विनय कुमार जी, 

देर से आने के लिये खेद है..आपकी कथाओं का इन्तजार रहता है...

एक बेटी को सशक्त दिखाते हुये आपने आज की कई वास्तविक घटनाओं को आंखो के सामने से गुजारा है...बधाई...

कथा में अगर पुत्र एक नाकारा की तरह दिखाया गया है...अगर उसे किसी आस पास की जगह पर रहते हुये कहा गया होता तो कथा में उसके इस भाव को स्पष्ट रुप से बताया जा सकता था. अगर वो विदेश में रहता हो तो इतनी जल्दी दुबारा आना सम्भव नहीं होगा. जैसा  कथा में उसे 15 दिन पहले ही आये हुये बताया गया है,  और जैसा राजेश कुमारी जी ने कहा कि अपने एक कर्तव्य से वो विमुख नहीं है और धन की पूर्ति करता रह रहा है...

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 4:10pm

आभार लक्ष्मण धामीजी..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2014 at 11:55am

आ0 विनय कुमार जी भाव विभोर करती इस रचना के लिए कुछ भी कह पाना सामथ्र्य में नहीं । हार्दिक बधाई स्वीकारें । अपनी किसी गजल का एक शेर इस कथा के पक्ष में उद्धृत कर रहा हूँ । यथा-
कहानी झूठ गढ़ली क्यों, पराई बेटियाँ कह कर
जनम से देखता मैं तो हुआ बेटा पराया है

Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 1:02am

आभार डॉ आशुतोषजी एवम जवाहरलाल जी..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 5:04pm

आदरणीय विनय जी भावुक कर देने वाली इस सुंदर रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 14, 2014 at 8:39pm

आज का सच ...बस ..और क्या कहूं ...

Comment by विनय कुमार on July 13, 2014 at 10:30pm

आभार जितेंद्रजी एवम राजेशजी | दरअसल ये कहानी एक बेटी की मनोदशा की है जिसने पिता की हर तरह से देखभाल की , बेटे ने पैसे का फ़र्ज़ ही निभाने का प्रयत्न किया , इसीलिए बचे हुए पैसे उसके खाते में जमा करवाने के लिए उसने कहा | शायद पूरी तरह स्पस्ट नहीं कर पाया मैं | इसी तरह मार्गदर्शन करते रहिये आप सब |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service