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ग़ज़ल- कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

१२२२       १२२२          १२२२         १२२२

ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं

ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की

ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं

खुदी में दम नहीं है गर तो हासिल कुछ नहीं होता

कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 6:02pm

प्रयास उम्दा हुआ है संजूजी. बधाई स्वीकार करें.

Comment by vijay nikore on July 9, 2014 at 4:16pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया।

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 3:58pm

ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं

ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की
ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं
बहुत खूब ,बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 9, 2014 at 7:06am

सुन्दर गजल बधाई आपको ......................................................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:45pm

बहुत खूब सुन्दर ग़ज़ल बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on July 8, 2014 at 3:51pm
" बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । "
Comment by parul 'pankhuri' on July 8, 2014 at 10:16am

आदरणीया बहुत ही सुन्दर गजल बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:48am

आदरणीय संजू जी, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ.........

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं...................बहुत खूब, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by sanju shabdita on July 7, 2014 at 7:33pm

आदरनिया कल्पना दी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on July 7, 2014 at 7:32pm

आदरणीय Santlal Karun सर बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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