For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे वो याद करते हैं जो भूले थे कभी मुझको,
बस ऐसे ही जहां भर की मिली है दोस्ती मुझको.   
.

ज़माना ज़ह्र  में डूबे हुए नश्तर चुभोता है,
बचाती ज़ह्र  से लेकिन मेरी ये मयकशी मुझको.    
.

मुझे कहने लगा ख़ंजर, “मुहब्बत है मुझे तुमसे,
कि इक दिन मार डालेगी तुम्हारी सादगी मुझको.” 
.

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है,
मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको.
.

ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,
समझनी है अभी इन पत्थरों की बेबसी मुझको. 
.

बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको.
.

बिखर जाऊं जहां में “नूर” बनके है यही ख्वाहिश,
मेरे मौला अता कर बरक़तों की रौशनी मुझको.
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 3:36pm

धन्यवाद आ. जितेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 3:35pm

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 3:35pm

धन्यवाद आ. राजेश कुमारी जी ..आपने भी उसी शेर पर ऊँगली रखी जो मेरे दिल के बहित करीब है ..
बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 3:34pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 3:34pm

धन्यवाद आदरणीय गिरिराज जी ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 10:15am

आदरणीय निलेश जी, बहुत बहुत खुबसूरत गजल

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है,
मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको.

बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको.

यह दो अश:आर बहुत बेमिसाल हुए ,दिली बधाई स्वीकारिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:42am

आ0 भाई नीलेश जी बेहतरीरन गजल हुई । हर शेर अपना अलग असर छोड़ रहा है । हार्दिक बधाई कबूलें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 9:38pm

ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,
समझनी है अभी इन पत्थरों की बेबसी मुझको. -------जबरस्त 
.

बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको.-----लाजबाब 

मकते के शेर ने तो दिल मोह लिया 

हर शेर लाजबाब ,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल ,तहे दिल से ढेरों दाद कबूलें आ० नूर जी 
.

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 8:59pm
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। आपको बहुत बहुत बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 30, 2014 at 6:26pm

आदरनीय नीलेश भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , कुछ अशआर तो ऐसे कह दिये आपने कि मै अपने को सराहना करने के योग्य भी नही पा रहा हूँ । बस ! ढेरों बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।

मुझे कहने लगा ख़ंजर, “मुहब्बत है मुझे तुमसे,
कि इक दिन मार डालेगी तुम्हारी सादगी मुझको.” 
.

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है,
मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको.
.

बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको. ------------  इन अशआर ने मौन कर दिया है ॥ शब्द से परे ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service