For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ के सिवा - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l

जिंदगीभर  कौन देता  है खुशी माँ के सिवा
ले अॅधेरा  कौन  देता  रौशनी  माँ के सिवा

**
वह लहू  को कर  सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा

**
बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी
क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा

**
दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे
कौन अपनाता बता दे  तिश्नगी  माँ के सिवा

**
माँ न मिलती है दुबारा बेदखल घर से न कर
आ मिलेंगे फिर भले ही  यूँ सभी माँ के सिवा

**

2122  2122  2122  212

***

मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2014 at 11:02am

आदरणीय भाई सौरभ जी , आपसे सराहना मिली , बांछें खिल गयी . आपका मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ही कुछ बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करा है . स्नेह मिलता रहे यही कामना है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:08am

अच्छे विचारों से पगी इस ग़ज़ल को पढ़वाने के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:47am

आदरणीय भाई अरुण जी उत्साहवर्धन के लिए आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:42am

आदरणीय भाई , गिरिराज जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्वाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:41am

आदरणीय आशुतोष भाई ग़ज़ल की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद. संशय वाली पंक्ति को अब कोमा लगाने के बाद इस प्रकार देखें - कौन खुद को यूँ गला, दे जिंदगी माँ के सिवा . अब आप पंक्ति का भाव स्पष्ट तौर पर समझ सकते है. आभार .

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 10:39am

वाह भाई जी वाह इस ग़ज़ल पर हृदयतल से ढेरों ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें. जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 6:35pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , मातृ सत्ता को परिभाषित करती आपकी बेहतरीन गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2014 at 4:28pm

वह लहू  को कर  सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा  आदरणीय लक्षमण जी ..इस ग़ज़ल के माध्यम से माँ चरित्र दर्शन हुए ..माँ की महिमा मई तस्वीर को उजागर करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..कौन खुद की यूं गला दे जिन्दगी माँ के सिवा ...हो सकता है इस शेर को मैं समझ न पाया हूँ ..मुझे लगा को की जगह की ज्यादा उपयुक्त है ..हो सकता है मैं गलत भी हूँ ..सादर बधाई के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:46am

आदरणीय भुवन भाई , ग़ज़ल  की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:15pm

आदरणीय माँ पर समर्पित इस गज़ल कि जितनी भी प्रशंशा की जाए कम है..

कृपया  बधाई स्वीकार करें...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service