For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल …. है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये

 रदीफ़ -के लिये 
काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं 
अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212 

है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये 
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये . 

नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये 
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .

है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को 
माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं के लिये .

खौफ़ से जिसके हमेशा थरथराई जिंदगी 
जानता हूँ वो झुका है याचनाओं के लिये .

गुनगुनाती थी मुझे छू कर कभी मदहोश सी 
अब तरस जाता हूँ उन बहकी हवाओं के लिये .

सो रहा कबसे अरे अब जागना होगा तुझे 
गीदड़ों की भीड़ में यम गर्जनाओं के लिये .

-ललित मोहन पन्त 
18.04.2014
01.04 रात 
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 988

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Maheshwari Kaneri on April 20, 2014 at 7:38pm

  बहुत खूबसूरत ग़ज़ल..

Comment by umesh katara on April 19, 2014 at 8:41pm

वाहहहह वाहहहहह क्या कहने सर खूबसूरत गज़ल वाहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:28pm

नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये 
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये . --- बहुत खूब सूरत शे र ,

आदरणीय ललित भाई , पूरी गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ।

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:57pm

खूबसूरत ग़ज़ल

Comment by coontee mukerji on April 19, 2014 at 7:06pm

सो रहा कबसे अरे अब जागना होगा तुझे 
गीदड़ों की भीड़ में यम गर्जनाओं के लिये ....बहुत खूब.

Comment by dr lalit mohan pant on April 19, 2014 at 1:15am

 आ  .  गीतिका 'वेदिका जी जितेन्द्र 'गीत जी Mukesh Verma "Chiragh" जी पेला  जी ,नादिर खान साहब  आप सब की जर्रा नवाजी का शुक्रिया  … मुझे अपनी गलती महसूस हो गई  … मैं उसका काफिया नहीं बदल पा रहा हूँ इसलिए इसे इस ग़ज़ल से हटाना चाहूँगा  … इसी तरह से रास्ता दिखाते रहें  … 

Comment by नादिर ख़ान on April 18, 2014 at 10:54pm

है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये 
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये . आदरणीय मोहन जी बहुत ही कमाल का मतला है बहुत खूब ..

नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये 
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये ....अगर मिसरा ए उला को यूँ  किया जाए (नींद अब आती नहीं जब ख्वाब हैं पसरे हुये)

गुनगुनाती थी मुझे छू कर कभी मदहोश सी 
अब तरस जाता हूँ उन बहकी हवाओं के लिये ... काफिये का निर्वाहन नहीं हुआ है कृपया चेक कर लें ।

Comment by Krishnasingh Pela on April 18, 2014 at 1:26pm

हार्दिक बधाइ खूबसूरत ग़ज़ल के लिए अादरणीय ललित पन्त जी । 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 18, 2014 at 11:26am

आदरणीय ललित जी
इस सुंदर ग़ज़ल और खूबसूरत बयानी के लिए मेरी तरफ से हज़ारों दाद हाजिर है..
इस शेर के काफ़िए पर दोबारा नज़र डालिएगा.

गुनगुनाती थी मुझे छू कर कभी मदहोश सी
अब तरस जाता हूँ उन बहकी हवाओं के लिये .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2014 at 9:49am

गुनगुनाती थी मुझे छू कर कभी मदहोश सी 
अब तरस जाता हूँ उन बहकी हवाओं के लिये...........बहुत खुबसूरत

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय ललित जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service