जीवन का आधार........
हर सांस
ज़िंदगी के लिए
मौत से लड़ती है
हर सांस
मौत की आगोश से
ज़िंदगी भर डरती है
अपनी संतुष्टि के लिए वो
अथक प्रयास करती है
मगर कुछ पाने की तृषा में
वो हर बार तड़पती है
तृषा और तृप्ति में सदा
इक दूरी बनी रहती है
विषाद और विलास में
हमेशा ठनी रहती है
ज़िंदगी प्रतिक्षण
आगे बढ़ने को तत्पर रहती है
और उसमें जीने की ध्वनि
झंकृत होती रहती है
हर कदम पे लक्ष्य
बदलते रहते हैं
शह और मात के
इस खेल में जीत के
प्रयास चलते रहते हैं
हार जीने के प्रयास को
आगे ले जाती है
जीत जीवन के नए
लक्ष्य बनाती है
प्रतिक्षण जीने का संघर्ष
ही जीवन का आधार है
संघर्ष का विराम ही
जीवन पृष्ठ का उपसंहार है
सुशील सरना
''मौलिक एवं अप्रकाशित ''
Comment
aa.Dr.Gopal Narayan Shrivastav jee rachna par aapkee aatmeey prashansa ka haardik aabhaar
aa.Jitendr 'Geet' jee rachna par aapkee madhur prashansa ka haardik aabhaar
सुंदर भाव से जीवन के संघर्ष को परिभाषित करती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय शुशील जी
शरना जी
क्या बात है i आपने बहुत अच्छी संजीदा कविता लिखी i
अंत तक दिशा बिलकुल सही i
बधाई हो श्रीमन i
बहुत बढ़िया आदरणीय सुशीलजी बहुत बहुत बधाई आपको
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