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दूर बैठे थे उनसे कभी हम आज कितने करीब आ गये
दिल ने किया कब दिल से बाते इससे अंजान  हो गये
बातो ही बातो हम एक दूजे की नजरो में खो गये
मगर लगी जो नजर प्‍यार पर एक दूजे से दूर हो गये
कभी अपने लगते थें जो रास्‍ते आज बेगाने हो गये

किसकी जुबान से निकला क्‍या हम ढूढ़ते रह गये
चॉंद ढ़ले तक करते बात जो अब चॉंद निकलते सो गये
एक झलक पाये उनका अब लगता वर्षो हो गये
एक ही तो प्‍यार था मेरा वो जाने कहॉं अब खो गये
कभी अपने लगते थे जो रास्‍ते आज बेगाने हेा गये

मेरी खुशी,सपने, चाहते  कभी उन्‍ही के थे हो गये
हर कदम पर था साथ उनका कदम वो आज खो गये
नेह की इस प्रीति बंधन को जाने क्‍यों वह तोड़ गये
लौटेगा अखंड कभी तुम्‍हारा प्‍यार इंन्‍तजार में रह गये
कभी अपने से लगते थे जो रास्‍ते आज बेगाने हो गये।

 

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on November 26, 2013 at 2:17pm

सादर धन्‍यवाद आदरणीये आप सबको नमन

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 2:14pm

आदरणीय अखंड जी ..सुंदर रचना पर तहे दिल बधाई 

Comment by Meena Pathak on November 26, 2013 at 2:01pm

सुन्दर प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 26, 2013 at 8:08am

सुंदर रचना प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय अखंड जी

Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2013 at 11:42am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 10:27am
आ. अखंड भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाई !!!
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 24, 2013 at 7:40pm

टूटे  दिल से निकली आह कविता के रूप में। हार्दिक बधाई अखंड भाई , सुंदर रचना के लिए॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2013 at 7:12pm

अखंड जी

भगवान् आपकी हसरते पूरी करे  i निराश न हो  i

 आपकी भाव प्रवणता पर आपको बधाई  i  

कृपया ध्यान दे...

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