For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं

वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं

दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं

 

चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है  

विरह की आग में जलने के बाद आते हैं

 

न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों  

तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं

 

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं

 

तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं ..............दीप...............

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 857

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 6:46pm
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं..बहुत सुन्दर

हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर
Comment by राजेश 'मृदु' on November 25, 2013 at 2:31pm

जय हो आदरणीय, बढि़या प्रस्‍तुति है, इधर कुछ अरसे से देख रहा हूं कि आपकी लेखनी में कुछ चटकीले रंग घुल गए हैं जो उपर-उपर तैरते हुए से लग रहे हैं, कुछ गहरे रंग भी पेश करें गुजारिश है ताकि आप्राण अनुप्राणित हो रोम-रोम से जय हो कर सकें, सादर

Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2013 at 1:12pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 25, 2013 at 8:23am

बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है संदीप जी। हर एक शेर लाजवाब। और ये शेर तो बहुत अच्छा हो गया है:

चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है  

विरह की आग में जलने के बाद आते हैं

ढेरों दाद कुबूल हो 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 24, 2013 at 12:34pm

वाह वाह वाह और वाह ...क्या मतला क्या शेर .. क्या ग़ज़ल ... आहा ... ऐसी ग़ज़ल पढना ..बहुत बहुत  बधाई. बहुत बड़ी ग़ज़ल है ये ..संदीप भाई ..सहेजियेगा... आप की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है इस ग़ज़ल के बाद क्यूँ की हमारी उम्मीदें बढ़ गई है आप से.   

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 23, 2013 at 8:00pm

लाजबाब गजल के लिये ढेरों बधाइयाँ

Comment by विजय मिश्र on November 23, 2013 at 5:48pm
इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई संदीपजी , सुंदर शब्दों को पिरोये हैं .
Comment by Abhinav Arun on November 23, 2013 at 5:04pm

लाजवाब शानदार ख़ूबसूरत कलाम ! बधाई संदीप जी !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 23, 2013 at 4:14pm

आदरणीय संदीप भाई जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल दो शेर तो कमाल के बन पड़े हैं इनके लिए विशेष दाद कुबूल फरमाएं.

न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों  

तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं.. बेहतरीन

 

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं .. बेहद उम्दा वाह वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2013 at 11:50pm

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं-----वाह्ह्ह शानदार शेर संदीप जी दाद कबूलें 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service