For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' ---ख़ुशबू

२ १ २  २   १ १ २ २  १ १ २ २, २ २ /११२


दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,
शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.
...

ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,  
गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू.
...

फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब,
फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू. 
...

वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.  
....

चंद लम्हात गुज़ारे थे तुम्हारे नज़दीक़,  
बस उसी रोज़ से पहनी है तुम्हारी ख़ुशबू. 
....

दिल के जंगल में खिला याद का महुआ जो कभी,
‘नूर’ को याद बहुत आई कुँवारी ख़ुशबू.  
..........................................................
निलेश 'नूर' 
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2013 at 8:39am

धन्यवाद आदरणीय अरुण जी, सौरभ जी राजेश कुमारी जी ..... आभार  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 2:26pm

जी नीलेश जी मेरा संशय दूर हुआ हार्दिक धन्यवाद ,पुनः ग़ज़ल की बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 17, 2013 at 1:33pm

वाह भाईजी वाह ! बहुत खूब !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 1:12pm

आदरणीय निलेश जी बहुत ही बढ़िया खुशबूनुमा ग़ज़ल पेश की है आपने

वाह वाह दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 17, 2013 at 9:07am

सभी मित्रो का धन्यवाद ... आत्याधिक व्यस्तता के चलते और रिमोट एरियाज में काम करने के कारण इन्टरनेट दूर था अत: आभार प्रदर्शित नहीं कर पा रहा था ... क्षमा चाहता हूँ.
आदरणीय वीनस जी ... आप से दाद मिली तो जिंदगी मिल गई ....धन्यवाद स्नेह बनाए रखिये ... सभी को धन्यवाद
आदरणीय राजेश कुमारी जी  "फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब" इस मिसरे की तक्तीअ कुछ यूँ की है 
फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब
२..१..२...२/१....१.२.२./१२.१...२/१..१..२ +१ ....
आप ने ग़ज़ल की सराहना की ..बहुत बहू आभार .. सभी को पुन: धन्यवाद    

Comment by वीनस केसरी on November 17, 2013 at 3:23am

जियो भाई
अच्छी ग़ज़ल कह दी
भई वाह वा
बहुत खूब

Comment by ram shiromani pathak on November 17, 2013 at 12:51am

वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू..........उम्दा  यह शेर बहुत पसंद आया

  
 आदरणीय निलेश जी, हार्दिक बधाई  आपको///सादर  

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 5:44pm
निलेशजी , लबालब है . बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन शीरीं गजल केलिए .आभार
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 16, 2013 at 3:52pm

आदरणीय नूर जी ..वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.  ..हर शेर उम्दा ..कई बार पढ़ा ..बड़ी नजाकत से कही है अपने हर बात ..तहे दिल बधाअयीए के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2013 at 10:24am

वाह्ह्ह बहुत सुन्दर शालीन भाव पूर्ण उम्दा ग़ज़ल नीलेश जी 

दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,
शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.--------------------वाह क्या रुमानियत अंदाज भरा मतला
...
ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,
गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू.------सच कहा हाथों में महक ना होती तो हिना भी किस काम कि
...
फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब, ------उला का वज्न एक बार जांच लें --एक इस्स्लाह (खुल गया फूल लिए कोई किताबी पन्ना )
फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू.
...
वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,-----वाह्ह्ह्ह
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.
....
चंद लम्हात गुज़ारे थे तुम्हारे नज़दीक़,
बस उसी रोज़ से पहनी है तुम्हारी ख़ुशबू. -----बेहतरीन बेहतरीन
बहुत बहुत सुन्दर दिली दाद कबूलें इस ग़ज़ल पर
....
दिल के जंगल में खिला याद का महुआ जो कभी,
‘नूर’ को याद बहुत आई कुँवारी ख़ुशबू.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service